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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास
इस प्रकार ८४ शिक्षार्थी श्रमणों को उद्योतनसूरि ने समीचीनतया श्रागमों का अध्ययन करवाया । अध्ययन के सम्पन्न हो जाने पर एक रात्रि में सुविहित श्रमण परम्परा के अभ्युदय सूचक शुभ मुहूर्त को देखकर उद्योतन: सूरि ने अपने शिष्यों से कहा कि देखो आकाश में बृहस्पति रोहिणी शकट में प्रवेश करने जा रहा है । इस प्रकार के शुभ मुहूर्त में यदि कोई गुरु अपने शिष्य के सिर पर हाथ रखकर उन्हें आचार्य पद प्रदान कर दे तो उन प्राचार्यों की दिशा विदिशाओं में दूर-दूर तक यशोकीर्ति प्रसृत होती है ।
८३ उन विभिन्न स्थविरों के शिष्यों की प्रार्थना पर उद्योतनसूरि ने कंडे काष्ठ के प्रभिमन्त्रित चूर्णमय वासक्षेप के साथ क्रमशः उनके शिर पर अपना हाथ रखते हुए उन्हें प्राचार्य पद प्रदान कर दिये ।
-भाग ४
अपने शिष्य वर्द्धमान मुनि को, जो कि चैत्यवासी परम्परा का परित्याग कर उनके पास पंच महाव्रत रूप श्रमण धर्म की दीक्षा ग्रहण कर शिष्य बने थे, उद्योतनसूरि ने इन ८३ श्रमणों को प्राचार्य पद प्रदान करने से कुछ समय पूर्व ही अपना पट्टधर नियुक्त कर सूरि मन्त्र प्रदान कर दिया था । वर्द्ध मानसूरि को आचार्य पद प्रदान करते समय उद्योतनसूरि ने गच्छ वृद्धि के लाभ को देखते हुए उन्हें उत्तराखंड में विहार करने का आदेश दिया । उत्तराखंड और अनेक क्षेत्रों में धर्म का प्रचार करने के अनन्तर वर्द्धमानसूरि सरसा नामक पत्तन 'नगर' में पधारे ।
उन्हीं दिनों सोम नामक ब्राह्मण के दो पुत्र शिवदास तथा बुद्धि सागर और कल्याणवती नाम की पुत्री – ये तीनों भाई-बहिन सोमेश्वर महादेव के दर्शनार्थ तीर्थ यात्रा करते हुए उस समय के प्रसिद्ध नगर सरसा में पहुंचे । तीनों बहन भाइयों ने सरस्वती नदी में स्नान किया और सोमनाथ महादेव का अन्तर्मन में ध्यान करते हुए वे वहीं सो गये । मध्य रात्रि में उनके समक्ष सोमनाथ महादेव ने प्रकट होकर कहा: - " वत्सो ! मैं तुम पर प्रसन्न हूं । तुम मुझसे मनोवांछित वर मांगो।"
उन तीनों ने सांजलि शीष झुका कर वर की याचना करते हुए शंकर से प्रार्थना की :- "प्रभो । आप हम पर प्रसन्न हैं तो हम तीनों को वैकुण्ठवास प्रदान कीजिये ।"
सोमनाथ ने कहा :- " वत्सो । वैकुंठ तो मुझे भी उपलब्ध नहीं है, ऐसी स्थिति में मैं तुम्हें वैकुंठवास किस भांति प्रदान कर सकता हूं । यदि वस्तुतः वैकुंठवास ही तुम्हारा एकमात्र लक्ष्य है तो श्री वर्द्धमानसूरि के चरणों की सेवा करो । वर्तमान काल में एक मात्र वे ही वैकुंठवास प्रदान करने में सक्षम हैं, ' समर्थ हैं । यह कहकर सोमनाथ महादेव अदृश्य हो गये ।
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दान सागर जैन ज्ञान भण्डार, बीकानेर पो० १० ग्रं० १५२ गुर्वावली, पृ० ६
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