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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ से राजा भोज एवं उसकी दिग्दिगन्त में प्रसिद्ध विद्वद् मण्डली और भोज की राज सभा को चमत्कृत कर दिया। जब उन चारों कवयित्रियों से उनका वंश परिचय पूछा गया तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में उत्तर दिया, "राजा भोज की विद्वद् मण्डली की अनूठी कल्पना शक्ति एवं अज्ञात तथ्य की वास्तविकता प्रकट करने के कौशल की बड़ी प्रशंसा सुनी है। तो क्या हमारी जाति के सम्बन्ध में वास्तविकता ज्ञात करना यहां के कवियों के लिये कोई कठिन कार्य है ?"
पर्याप्त विचार-विमर्श के अनन्तर भी उन चारों विदुषी महिलाओं की जाति ज्ञात कर लेने का किसी विद्वान् ने साहस नहीं किया, तो अन्ततोगत्वा महाकवि कालिदास ने इस कार्य को पूरा करने का बीड़ा उठाया।
___ कालिदास ने उन चारों विदुषी महिलाओं के कक्ष के पास वाले ऐसे कक्ष में अपना पलंग बिछवाया, जहां उन चारों महिलाओं की बात-चीत स्पष्टतः सुनाई दे सकती थी। उन विदुषी महिलाओं के निद्राधीन हो जाने के अनन्तर कालिदास भी अपने लिये नियत कक्ष में जाकर सो गए । कालिदास सदा ब्रह्ममुहूर्त में उठने वाले धर्म-निष्ठ विद्वान् थे । वे ब्रह्ममुहूर्त में उठे और अपने पास के कक्ष की ओर कान लगा कर बैठ गये। घटिका पर्यन्त प्रतीक्षा करने के अनन्तर उनके कर्णरन्ध्रों में उन चारों विदुषी महिलाओं में से एक विदुषी की, तदनन्तर दूसरी की, तत्पश्चात् तीसरी की और अन्त में चौथी विदुषी की वीणाझंकृतितुल्य सुमधुर कण्ठ-ध्वनि गुजरित हुई :
"परं प्राची पिङ्गा रसपतिरिव प्राष्य कनकम्, परिम्लानश्चन्द्रो बुधजन इव ग्राम्य सदसि । परिक्षीणास्ताराः नृपतय इवानुद्यमपरा, न राजन्ते दीपाः द्रविण रहितानामिव गुणाः ।।" .
चारों विदुषियों की कण्ठध्वनि से तो कालिदास राज्यसभा में ही परिचित हो चुके थे, इन चारों पदों को सुनकर उन चारों महिलाओं के वंश का परिचय भी प्राप्त कर लिया और वे तत्काल अपने भवन की ओर लौट कर नित्यकर्म से निवृत्त होने में प्रवृत्त हो गये।
राजा भोज ने राज सभा में उपस्थित हो जब महा कवि की ओर इंगित किया तो कालिदास ने अपनी अलंकारपूर्ण भाषा में उन चारों विदुषियों की ओर क्रमशः संकेत करते हुए कहा :-"आप स्वर्णकारवंश की शोभा में चार चांद लगाने वाली, ये ब्रह्मकुल की कीर्तिपताका, वे रण में और काव्यगोष्ठी में समान रूप से उत्कृष्ट यश प्राप्त करने वाले विद्वद्जन हृदय सम्राट राज राजेश्वर महाराज भोज के समान क्षत्रिय कुल को सुशोभित करने वाली महिला रत्न हैं, और ये जो चौथी विदुषी हैं वे श्रेष्ठि कुल की शृगार-रसिका महिला रत्न हैं ।"
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