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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
दक्षिण में जैन संघ पर
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महाकवि कालिदास द्वारा प्रस्तुत की गई क्षत्रिय शब्द की इस व्याख्या को अक्षरशः चरितार्थ करते हुए सतयुग के महाराजाओं की भांति क्षात्रधर्म का निर्वहन किया। महाराज बुक्कराय के इस धार्मिक एवं सामाजिक न्याय के प्रति जैन धर्मावलम्बी चिरकाल तक कृतज्ञ रहेंगे।
ईसा की सातवीं शताब्दी के प्रथम चरण में तमिलनाडु प्रदेश में जो धर्मोन्माद की भयंकर प्रांधी जैनों के विरुद्ध उठी, वह शनैः शनैः कर्नाटक और आन्ध्रप्रदेश में भी फैली और ईसा की पन्द्रहवीं सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भकाल तक जैनधर्मावलम्बियों को कहीं प्रलय तो कहीं खण्ड प्रलय के दृश्य कभी अधिक तो कभी न्यून मात्रा में दिखाती ही रही।
सुदीर्घ अतीत से समय-समय पर सागर में उठते आ रहे भीषण समुद्री तूफानों की विनाशलीला के ताण्डव-नृत्यों के लोमहर्षक-हृदयद्रावी वृत्तान्त, पीढ़ी प्रपीढ़ी क्रम से मानव सुनता आ रहा है । पौराणिक युग में महाराज मनु के शासन काल में पाये जलविप्लव के विवरण प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं, संगमकाल के अनन्तर एक प्रति भीषण समुद्री तूफान उठा, हिन्द महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के नाम से अभिहित किये जाने वाले तीनों सागरों ने अपनी वेलानों का उल्लंघन कर कन्याकुमारी प्रदेश में एक प्रबल खण्ड-प्रलय का महासंहारकारी दृश्य उपस्थित कर, जहां पूर्वकाल में विद्वानों के दो संगम हो चुके थे, उस विशाल भू-भाग को सागर ने सदा के लिए अपने क्रोड़ में छुपा लिया । अगणित मानवों, भिन्न-भिन्न जातियों के पशु-पक्षियों एवं समस्त भूतसंघ के साथसाथ उस बड़े भू-भाग को सागर ने छीन लिया-निगलकर उदरसात् कर लिया। साम्प्रत काल में भी प्रायः प्रतिवर्ष सागर में उठने वाले तूफानों की विनाश लीला को हम समाचार-पत्रों में पढ़ते हैं, दूरदर्शन के माध्यम से देखते हैं और हम में से अनेक तो अपनी आंखों से उस विनाश लीला को देखते भी हैं। इन समुद्री तूफानो की विनाश लीला तो एक सीमित अवधि तक ही परिसीमित रहती है। अनेक बार तो प्रायः कुछ घड़ियों, कुछ घण्टों और कभी-कभी एक दो दिनों अथवा कतिपय दिनों के पश्चात् सागर अपनी प्रलयकारिणी लीला को समेटकर पुनः पूर्ववत् शान्त हो जाता है। थोड़े से समय की सीमित अवधि के इन समुद्री तूफानों के परिणामस्वरूप कितने प्राणियों का संहार हो जाता है, इसका अनुमान लगाना आज के सर्वसाधन सम्पन्न वैज्ञानिक युग में भी बड़ा कठिन हो जाता है ।
जब जड़ समझे जाने वाले समुद्र तक के भावना-शून्य तूफानों से इस प्रकार की प्रलयोपम विनाश लीला ताण्डव नृत्य करती है तो सृष्टि के सर्वाधिक बुद्धिशाली मानव के अहर्निश भावनाओं से ओतप्रोत मानस में उठे तूफान के कितने भयंकर परिणाम हो सकते हैं इस सम्बन्ध में प्रत्येक विचारशील विज्ञ कल्पनाओं की उड़ान कर सकता है । ईसा की छठी सातवीं शताब्दी के सन्धिकाल में तमिलनाडु प्रदेश के
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