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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४
भिषेकं चकार ।। सम्वत् १९५० वर्षे पौष वद ३ शनौ श्रवण नक्षत्रे वृपलग्ने श्री सिद्धराजस्य पट्टाभिषेकः ।
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७. स्वयं तु प्रशापल्ली निवासिनमाशाभिधानं भिल्लमभिषेरणयन् | कर्णावती पुरं निवेश्य स्वयं तत्र राज्यं चक्रे ।"
अर्थात् - चालुक्य राज कर्ण ने अपने पुत्र का नाम जयसिंह रक्खा । जब कुमार जयसिंह ३ वर्ष का हुआ उस समय अपने समवयस्क वालकों के साथ खेलता हुआ विशाल गुर्जर राज्य के सिंहासन पर इस प्रकार की प्रशस्त मुद्रा में जा बैठा मानो कोई अनुभवी सम्राट् ग्रपने राज सिंहासन पर बैठा हो । समीप ही बैठे हुए महाराजा कर्ण एवं उनके मन्त्रिगरण को तीन वर्ष जैसी स्वल्प वय के बालक राजकुमार को कुशल सम्राट् की मुद्रा में सिंहासन पर बैठे देख हर्ष मिश्रित आश्चर्य हुआ । पास ही में बैठे निमित्तज्ञ राज पुरोहित ने कहा :
"महाराज ! इस समय प्रतीव श्रेष्ठ मुहूर्त्त है । इसी समय राजकुमार का राज्याभिषेक कर दिया जाय तो आगे जाकर ये शक्तिशाली गुर्जर साम्राज्य की स्थापना कर निष्कंटक राज्य करेंगे ।'
"
सबके परामर्शानुसार महाराज कर्ण ने तत्काल तीन वर्ष के अल्पायुष्क राजकुमार जयसिंह का गुर्जर राज्य के राज सिंहासन पर विक्रम सम्वत् १९५० की पौष वदि तृतीया शनिवार के दिन विधिवत् राज्याभिषेक कर दिया ।
अपने पुत्र को गुजरात के राज सिंहासन पर आसीन कर देने के पश्चात् महाराज कर्ण ने प्राशापल्ली के प्राशा नामक भिल्लराज को युद्ध में परास्त कर वहां कर्णावती नगरी बसाई और वहां रहकर वह अपने नव संस्थापित राज्य का शासन करने लगा ।
'प्रभावक चरित्र' और 'प्रबन्ध चिन्तामणि' इन दोनों विक्रम की चौदहवीं शताब्दी के ग्रन्थों के उपरिलिखित उल्लेखों से यह स्पष्ट हो जाता है कि विक्रम सम्वत् १९५० में पांच वर्ष की वय का बालक चंगदेव देवचन्द्रसूरि के आसन पर और तीन वर्ष का अल्पायुष्क राजकुमार जयसिंह अपने पिता चालुक्यराज के राज सिंहासन पर बालक्रीड़ा करते-करते ही बैठ गये । यह अद्भुत संयोग की ही बात है कि एक ही समय में दो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के उच्च पीठ पर आसीन होने वाले ये दोनों बालक अपने-अपने क्षेत्र में अपने समय के शीर्षस्थ युगपुरुष सिद्ध हुए । कालान्तर में कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि के नाम से विख्यात बालक चंगदेव ने दो राजाओं को जनकल्याण के मार्ग पर आरूढ़ कर जन-जन के जीवन में सुसंस्कार डालकर सुदीर्घ काल के लिये विस्तृत भू भाग में प्रमारि की घोषणाएं करवाने के माध्यम से गणनातीत पशु पक्षियों को अभयदान प्रदान कर और बड़ी संख्या में
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