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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] हेमचन्द्रसूरि
३५७ धर्मावलम्बी की धार्मिक भावना को किसी भी प्रकार की ठेस न पहुंचे, इस प्रकार की व्यवस्था करना हमारा परम पुनीत कर्त्तव्य है। सभी प्रकार के पूर्वाभिनिवेषों से मुक्त हृदय, अपरिग्रही, पक्षपात विहीन हेमचन्द्राचार्य कोई भी तथ्यविहीन अप्रामाणिक बात कहें, इस पर हठात् विश्वास नहीं होता। अतः उन्हें आप लोगों के समक्ष ही बुला कर इस बात का निर्णय कर लिया जाय कि उन्होंने पाण्डवों के सम्बन्ध में क्या कहा है और जो कुछ भी कहा है वह किस आधार पर कहा है। उनकी बात सुनने के पश्चात् ही न्यायपूर्ण निस्पक्ष निर्णय किया जाय तो सभी दृष्टि से समुचित होगा।"
_महाराज जयसिंह के इस प्रस्ताव से सभी अभियोगी सहमत हो गये । न्यायप्रिय सिद्धराज जयसिंह ने प्राचार्यश्री हेमचन्द्र को अपनी राजसभा में आमन्त्रित किया और अभियोगियों की सब बात उनके समक्ष रखने के अनन्तर उनसे पूछामहर्षिन् ! आपने वेदव्यास के कथन के विपरीत पांडवों के सम्बन्ध में अभियोगियों के कथनानुसार व्याख्यान में जो यह कहा है कि पांचों पाण्डवों ने आहती श्रमणदीक्षा ग्रहण कर अनशनपूर्वक गिरनार पर्वत पर मुक्ति प्राप्त की, इस सम्बन्ध में आप प्रमाणपुरस्सर यह बताने की कृपा कीजिये कि वास्तविकता क्या है ? महामहिम युधिष्ठिरादि पांचों पाण्डवों ने हिमगिरि का आरोहण कर केदार में भगवान् शंकर को जल चढ़ा उनकी पूजा अर्चा करते हुए शिवलोक को महाप्रयाण किया अथवा आहती श्रमरणदीक्षा ग्रहण कर गिरनार से निर्वाण को प्राप्त किया ?"
. प्राचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि ने राजसभा की न्यायपरिषद् के समक्ष पाण्डवों की मुक्ति के विषय में स्पष्टीकरण प्रस्तुत करते हुए घनरव गम्भीर स्वर में कहना प्रारम्भ किया :--"महाराज ! कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास ने जिन पाण्डवों के सम्बन्ध में अपने महाभारत पुराण में पाख्यान प्रस्तुत किया है, वह हमारे शास्त्रों में जिन पाण्डवों के जीवन चरित्र का वर्णन है, उन्हीं पाण्डवों के सम्बन्ध में आख्यान प्रस्तुत किया है अथवा अन्य किन्हीं पाण्डवों के सम्बन्ध में ? यह मैं तो नहीं बता सकता। यदि मेरे ये बन्धु जानते हों तो बताएं।"
प्राचार्यश्री हेमचन्द्र की बात सुनकर न केवल अभियोगी ही, अपितु न्यायपरिषद् के सभी सदस्य स्तब्ध हो प्राचार्यश्री की अोर अवाक् देखते ही रह गये । निस्तब्धता को भंग करते हुए महाराज जयसिंह ने श्री हेमचन्द्रसूरि से प्रश्न किया"क्यों महर्षिन् ! क्या पाण्डव भी भिन्न-भिन्न समय में बहुत से हो गये हैं ?"
आचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि ने उपस्थित जनों की जिज्ञासा को शान्त करने का प्रयास करते हुए कहा :-."राजन् ! सुनिये। महाभारत में वेदव्यास ने अपने पाख्यान में स्पष्ट कहा है कि रणांगण में प्रवेश करते समय भीष्म पितामहं ने अपने सभी वंशजों को सम्बोधित करते हुए कहा :- "युद्ध में वीर गति प्राप्त कर लेने के
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