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| जैन धर्म का मौलिक इतिहास---भाग ४
व्याप्त होने तक कुमारपाल उन ताड़पत्रों के नीचे छिपा रहा। रात्रि में चारों ओर निस्तब्धता देख आचार्यश्री ने कुमारपाल को कोठरी से बाहर निकाला और कहा :-"अब तुम निर्जन वनों में होते हुए यथाशीघ्र गुर्जर राज्य की सीमा से बाहर चले जाओ।"
लता गुल्मों और वृक्षों के समूह से आच्छन्न विकट वनों एवं पर्वतों को पार करता हुआ कुमारपाल वामदेव के तपोवन में आया। वहां तीर्थ में स्नान कर उसने पुनः जटाधर तापस का वेष धारण किया और निर्भय हो आगे बढ़ा। ज्योंही वह आलिग नामक एक कुम्भकार के घर के पास पहुँचा उसने घोड़ों के पौड की ध्वनि सुनी । यह सोचकर कि उसका काल उसका पीछा कर रहा है, कुमारपाल उस कुलाल के घर में घुस गया और उससे कहा :- "मुझे कहीं छिपाकर मेरे प्राणों की रक्षा करो।" कुम्भकार ने तत्काल उसे मिट्टी के बरतन पकाने के नीवाह के एक कोने में कच्चे भाण्डों के बीच छिपा दिया और ऊपर कण्टक, काष्ठ, कण्डे और घास-फूस आदि डाल दिये । कुम्हार ने बड़ी चतुराई से उस नीवाह के एक कोने में आग भी लगा दी। उसी समय राजपुरुष दौड़ते हुए उस कुम्भकार के घर में घुसे और कुम्भकार से पूछा :-"क्या यहां एक युवक आया था ?" कुम्हार ने तपाक् से उत्तर दिया :-"नहीं, महाराज ! यहां तो कोई नहीं आया। आप अच्छी तरह से घर और बाड़े को और देख लीजिये।" सैनिकों ने बड़ी सावधानी के साथ घर के बाहर-अन्दर चारों ओर घूम-घूम कर देखा । नीवाह में अग्नि की ज्वालाएं उठ रही थी इसलिए उस ओर कोई सैनिक नहीं गया । कुम्हार के घर में कुमारपाल को कहीं न पा सैनिक आगे की ओर बढ़ गये । सैनिकों के बहुत दूर निकल जाने पर कुम्हार ने जलते हुए नीवाह की ओर तेजी से बढ़कर देखा कि अभी आग की लपटें, जिस स्थान पर आगन्तुक छिपा है, उससे पर्याप्त दूरी पर है । उसने सन्तोष की सांस ली और कुमारपाल को नीवाह से बाहर निकाल कर एक अोर घास-फूस के ढेर की प्रोट में छिपा दिया। बड़ी सावधानी से चारों ओर देखकर कुम्हार ने कुमारपाल को भोजन करवाया।
रात्रि के समय में कुमारपाल कुम्भकार के प्रति हार्दिक कृतज्ञता प्रकट कर विकट वन की ओर बढ़ गया। इस प्रकार घूमते-घूमते पर्याप्त समय व्यतीत हो गया। एक दिन वह स्तम्भ तीर्थ में गया। वहां प्राचार्यश्री हेमचन्द्र चातुर्मासावासार्थ विराजमान थे। नगर में इधर-उधर घूमता हुआ कुमारपाल संयोगवशात हेमचन्द्रसूरि के उपाश्रय में पहुँचा और सूरीश्वर का व्याख्यान सुनने बैठ गया। प्राचार्यश्री ने छद्मवेष में होते हुए भी लक्षणादि से कुमारपाल को पहिचान लिया। व्याख्यान समाप्त होने के अनन्तर उन्होंने कुमारपाल को एकान्त स्थान में ले जाकर कहा :--"राजपुत्र ! अभी कुछ समय के लिये और धैर्य धारण करो । आज से सातवें वर्ष में तुम विशाल गुर्जर राज्य के स्वामी बन जानोगे।"
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