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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
हेमचन्द्रसूरि
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प्रकार के निर्णय को सुनकर सिद्धराज जयसिंह बड़ा खिन्न हुआ। इस बात को भली-भांति जानते हुए भी कि 'अवश्यम्भाविनो भावा भवन्ति महतामपि' सिद्धराज जयसिंह द्वेषाभिभूत हो कुमारपाल के प्राणापहार के लिये व्यग्र हो उठा। इससे पहले कि सिद्धराज उसकी हत्या के लिये कोई षड़यन्त्र की रचना करे, कुमारपाल. को किसी भांति संदेह हो गया और वह अणहिल्लपुर से चुपचाप पलायन कर शैव दर्शन में जटाजट तापस का वेष बनाकर रहने लगा । सिद्धराज जयसिंह ने कुमारपाल को खोज निकालने के लिये अपने विश्वस्त चरों को अनेक दिशाओं में भेज दिया। कुछ समय पश्चात् राजा जयसिंह को उसके गुप्तचर ने सूचना दी कि अरणहिल्लपुर पट्टरण में ३०० जटाधारी तापसों की एक जमात आई हुई है । उस जमात में कुमारपाल भी जटाजूटधारी तापस के भेष में विद्यमान है।
सिद्धराज जयसिंह ने कुमारपाल को खोज निकालने और यम का अतिथि बनाने के लक्ष्य से उन तीन सौ तापसों को भोजन के लिए अपने राजप्रासाद में निमन्त्रित किया । महाराज जयसिंह को यह विदित था कि कुमारपाल के पदतल में पद्म एवं विशाल ऊर्ध्व रेखा के चिह्न अंकित हैं । उस चिह्न को देख कर सहज ही कुमारपाल को पहिचाना जा सकता है। इस प्रकार मन ही मन विचार कर राजा स्वयं समागत अतिथि तापसों के पैरों का प्रक्षालन करने लगा। अनेक तापसों के राजा द्वारा पाद प्रक्षालन किये जाने के अनन्तर जब तापस के छद्मवेषधर कुमारपाल की बारी आई और राजा उसके पैरों का प्रक्षालन करने लगा तो उपरिलिखित दोनों चिह्नों का अंगुली स्पर्श से बोध होते ही सिद्धराज जयसिंह सशंक हो उठा। वह अपने अनुमान की पुष्टि के लिये सावधानीपूर्वक पद्म और ऊर्ध्वरेखा के चिह्नों को अपनी अंगुलियों से टटोलने लगा। कुमारपाल को तत्काल आशंका हो गई कि अब अतिशीघ्र ही उस पर प्राणापहारी संकट पाने वाला है । दूसरे तापस के चरण धोने से पूर्व अपने अनुचरों को महाराज जयसिंह संकेत करें इससे पूर्व ही कुमारपाल तापसों की प्रोट में छिपता हुअा त्वरित गति से अपने पूर्व परिचित राजप्रासाद के किसी गुप्त द्वार में प्रविष्ट हो वह राजप्रासाद से बाहर निकल भागा । अपनी प्राणरक्षा के लिये हेमचन्द्रसूरि के उपाश्रय के अतिरिक्त अन्य कोई सर्वाधिक सुरक्षित स्थान नहीं हो सकता । इस प्रकार विचार कर कुमारपाल हेमचन्द्रसूरि की वसति में प्रविष्ट हो हाथ जोड़कर उनसे निवेदन करने लगा :"महाराज ! चालुक्यराज जयसिंह मुझे मारना चाहते हैं । मेरी उनसे रक्षा करें।" हेमचन्द्रसूरि ने तत्काल कुमारपाल को ताड़पत्रों से भरी एक कोठरी में ताड़पत्रों के नीचे छिपा दिया।
कुमारपाल की खोज में सभी ओर दौड़ते हुए जयसिंह के सैनिकों ने आचार्यश्री हेमचन्द्र के उपाश्रय में प्रविष्ट हो उनसे पूछा और उपाश्रय में चारों अोर देखने पर भी कुमारपाल को न पा वे वहां से लौट गये। रात्रि में घनान्धकार
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