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सामान्य श्रुतघर काल खण्ड २ ]
हेमचन्द्रसूरि
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इस कथन के पीछे आपकी भावना प्रशस्त है, आप मुझे मोहनिद्रा से जागृत कर देने के लिये ही यह सब कुछ कह रहे हैं तथापि मैं आप से यह निवेदन कर देना चाहता हूं कि आपके स्वयं के कथनानुसार मेरा यह पुत्र चांगदेव अनर्घ्य है । संसार की समस्त सम्पदा को मैं इसके नाम पर ठुकराता हूं । क्योंकि वस्तुतः इसका कोई मोल है ही नहीं । जिनशासन के प्रति प्रगाढ प्रेम भरे, समष्टि के कल्याण के प्रति आपके अगाध आस्थापूर्ण आन्तरिक उद्गारों को सुनकर अब मेरी मोहनिद्रा पूर्णत: भंग हो गई है । यदि मैंने अपने पुत्र को अपने पास ही रक्खा, तो इसे मदारी के बन्दर के समान जन-जन को नमस्कार करना होगा और यदि मैंने इसे गुरुचरणों में समर्पित कर दिया तो यह विश्वन्द्य हो जायगा । राजा, महाराजा, श्रीमन्त, सेनापति, योद्धा और सभी प्रजाजन इसे वन्दन - नमन करेंगे । अतः मैं अपने प्राणप्रिय पुत्र को सहर्ष जिनशासन की सेवार्थ प्राचार्य श्री की सेवा में समर्पित करने के लिये समुद्यत हूँ ।" श्रेष्ठी चाचिग ने दृढ निश्चयपूर्ण स्वर में मन्त्रिवर उदयन से कहा :" बालक चंगदेव को लेकर चलिये। मैं इसी समय इसे प्राचार्य श्री देवचन्द्रजी के चरणों में जिनशासन की सेवार्थ समर्पित करता हूं ।'
मन्त्री उदयन, चाचिग श्रेष्ठि और बालक चंगदेव एक द्रुतगामी वाहन पर बैठ देवेन्द्रसूरि की सेवा में पहुंचे । वन्दन - नमन के अनन्तर श्रेष्ठिवर चाचिग ने सांजलि शीष का प्राचार्यश्री से निवेदन किया :- “भगवन् ! मेरे इस प्राणप्रिय पुत्र चंगदेव को मेरी धर्मिष्ठा सहधर्मिणी पहले ही आपको समर्पित कर चुकी है । अब मैं भी इसे सहर्ष आपकी सेवा में सदा के लिये समर्पित करता हूं। अब इसके माता, पिता, आराध्यदेव एवं भगवान् सब कुछ आप ही हैं ।"
यह सुनते ही होनहार बालक चंगदेव के हर्ष का पारावार न रहा । उसने आचार्यश्री के चरणों पर अपना मस्तक रखते हुए उनके चरणों को अपने दोनों कोमल हाथों से कस कर पकड़ लिया। संघ में हर्ष की लहर दौड़ गई। दीक्षा का मुहूर्त्त निकाला गया और विक्रम सम्वत् १९५० की माघ शुक्ला चतुर्दशी शनिवार के दिन प्रति श्रेष्ठ मुहूर्त्त में आचार्यश्री देवचन्द्र ने बालक चंगदेव को स्तम्भतीर्थ में स्थित भगवान् पार्श्वनाथ के मन्दिर के प्रांगरण में पंच महाव्रत रूप श्रमरणधर्म की दीक्षा प्रदान कर दी । दीक्षा के समय चंगदेव का नाम सोमचन्द्र रक्खा गया । मन्त्रिवर उदयन ने स्वयं अभूतपूर्व समारोह के आयोजन के साथ दीक्षा महोत्सव की समुचित रूप से देख-रेख एवं व्यवस्था की । प्रभावक चरित्र के उल्लेखानुसार दीक्षा के समय बालक चंगदेव की वय ५ वर्ष ३ मास की थी । प्रबन्ध चिन्तामणि के उल्लेखानुसार दीक्षित होने के समय बालक चंगदेव की आयु लगभग आठ वर्ष की थी । " प्रभावक चरित्र विक्रम सम्वत् १३३४ को और
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............................................तयोः पुत्रश्चांगदेवोऽभूत् । स चाष्टवर्षदेश्य: श्री देवचन्द्राचार्येषु श्री पत्तनातीर्थं यात्रा प्रस्थितेषु धुन्धुक्के श्री मोडवसहिकायां देवनमस्करणाय प्राप्तेषु सिंहासनस्थित तदीय निषद्याया उपरि सवयोभिः समं रममाणः शिशुभिः सहसा निषसाद । - प्रबन्ध चिन्तामणि, पृष्ठ १३५
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