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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २. ]
. हेमचन्द्रसूरि
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धारण प्रतिभाशाली पुत्र चंगदेव में उसी प्रकार की विराट् विभूति का अंकुर देखकर ही जिनशासन के अभ्युदय-उत्कर्ष के साथ-साथ जन-जन के अन्तर्मन में सच्ची मानवता के विकास के उद्देश्य से ही इस विलक्षण विभूति का चयन किया है।
- घर, द्वार, परिवार, विषय, कषाय, ऐहिक सुखोपभोग एवं समस्त सांसारिक प्रपंचों को तृणवत् त्याग कर, विषवत् वमन कर स्वयं के कल्याण के साथ-साथ समष्टि के कल्याण के लिये इन्होंने आगार रहित अहिंसा, सत्य, अस्तेय ब्रह्मचर्य
और अपरिग्रह-इन पांच महाव्रतों की प्रव्रज्या अंगीकार की है। सकल चराचर प्राणिवर्ग के हितैषी विश्वबंधु हमारे धर्मगुरु आचार्यदेव को किसी प्रकार का किंचित्मात्र भी ऐहिक लोभ हो, इस प्रकार की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती। इनके अन्तर्मन में यदि किसी प्रकार का लोभ, यदि किसी प्रकार की आकांक्षा है तो केवल यही कि जिनशासन का अभ्युदय-उत्कर्ष, प्रचार-प्रसार हो और सभी भांति समुन्नत जिनशासन के माध्यम से जन-जन के मन में मानवीय गुणों का विकास हो, समष्टि का कल्याण हो, एक मात्र इसी उद्देश्य से दूरदर्शी प्राचार्यश्री ने आपके पुत्र का चयन किया है कि आगम ज्ञान का, आध्यात्मिक ज्ञान का सुपांत्र यह बालक सभी विद्याओं में निष्णात हो, जन-जन का पथ प्रदर्शक बने, समष्टि को सत्पथ पर आरूढ़ कर जिनशासन की महिमा को दिग्दिगन्त में व्याप्त कर दे।"
श्रेष्ठि चाचिग ने व्यग्र स्वर में कहा-"किन्तु मन्त्रीश्वर ! मेरे तो एकमात्र पुत्र है। इसे यदि जिनशासन को समर्पित कर दूंगा तो संसार में मेरा और मेरे पूर्वजों का नाम ही मिट जायगा । इस एक मात्र पुत्र, कुल-दीपक को दे देने पर तो न केवल मेरे घर में ही अपितु मेरे अभ्यन्तर में, मेरी आंखों के समक्ष सदा के लिये निबिड़तम धनान्धकार छा जायगा।"
उदयन ने श्रेष्ठि चाचिग की आक्रोशपूर्ण व्यग्रता को शान्त करते हुए कहा :- "बन्धुवर ! जिनशासन के इस भावी कर्णधार एवं महान् प्रभावक पुत्ररत्न को जिनशासन की सेवा के लिये, श्रमण भगवान् महावीर के धर्मसंघ के उत्कर्ष के लिये समर्पित कर देने पर आपका नाम मिटेगा नहीं अपितु इस बालक के साथ-साथ आपका, आपकी रत्नगर्भा धर्मपत्नी का, मोढ जाति का, अापके धुन्धुका ग्राम का और समस्त गुर्जर प्रदेश का नाम सदा सर्वदा के लिये, जब तक सूर्य और चन्द्र प्रकाशमान रहेंगे, तब तक के लिये अमर हो जायगा। आपके जीवन में घनान्धकार नहीं जिनशासन के इस उदीयमान दिव्य नक्षत्र की यशश्चन्द्रिका से न केवल आपके घर, प्रांगन और अन्तर्मन में ही अपितु समस्त पृथ्वीतल पर अनिर्वचनीय आनन्द प्रदायक अलौकिक आलोक जगमगा उठेगा।"
. "युग प्रवर्तक महापुरुषों की श्रेरिण को सुशोभित करने वाले इस भावी महापुरुष को क्या आप धिंधुका की धूलि में ही धूलि-धूसरित अवस्था में देखना चाहते हैं ?
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