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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] हेमचन्द्रसूरि
[ ३४१ उसी समय सेवक ने स्नानगृह की ओर संकेत करते हुए चाचिग से विनम्र स्वर में निवेदन किया :-“मान्यवर ! स्नानादि के लिये कृपया पधारिये।"
श्रेष्ठी चाचिग के स्नानादि से निवृत्त होते ही मन्त्रीश्वर उदयन ने उन्हें अपने साथ बिठाकर भोजन कराया । मन्त्रिवर उदयन के इस प्रकार के उदारतापूर्ण वात्सल्य भाव का चाचिग श्रेष्ठि के अन्तर्मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। कुबेरोपम समृद्धि के स्वामी, राजसभा सदस्य, शूर शिरोमणि, सामन्त के अन्तर्मन में भी इस प्रकार की निरभिमानिता और स्वधर्मीवात्सल्य की भावना हो सकती है, यह श्रेष्ठिवर चाचिग को अपने जीवन में पहली बार अनुभव हुआ।
अशन-पानादि से निवृत्त होने के अनन्तर उदयन ने श्रेष्ठि चाचिग से कहा :-"अब आप विश्राम कीजिये । आप इसे अपना ही घर समझिये। भोजनोपरांत वामकुक्षि विश्राम स्वास्थ्य की दृष्टि से परमावश्यक है।" तत्पश्चात् विश्रान्तिकक्ष में मन्त्री उदयन और चाचिग ने घड़ी भर विश्राम किया। श्रेष्ठि चाचिग की थकान दूर हुई।
__चाचिग को पूर्ण रूपेण आश्वस्त देखकर उदयन ने सम्भाषण का क्रम प्रारम्भ करते हुए कहा :-"श्रेष्ठिवर ! आपका यह पुत्र चंगदेव वस्तुतः अदृष्ट पूर्व उत्कृष्ट मेधा एवं चमत्कारपूर्ण प्रतिभा का धनी है। इसने स्वल्प समय में ही पढ़ने लिखने और सुसंस्कारों को अपने जीवन में ढालने में अपनी असाधारण मेधाशक्ति का परिचय देकर हम सब लोगों के मन को जीत लिया है। मेरी यह सुनिश्चित, सुदृढ़ धारणा बन गई है कि यह बालक आगे चलकर न केवल गुर्जर भूमि के गौरव की अपितु हमारी सम्पूर्ण आर्यधरा की गरिमा की कीति-पताका दिग्दिगन्त में लहराएगा। देवचन्द्रसूरि जैसे महान् आध्यात्मिक शिल्पी महापुरुष के अहर्निश सान्निध्य में तो यह बालक आगे चलकर धर्म-धुरा-धौरेय और जन-जन के हृदय का सम्राट् युगपुरुष सिद्ध होगा। आप तो इसके जन्म काल से ही इसकी चेष्टाओं को, इसके अलौकिक गुणों को देखते आ रहे हैं। अतः आप तो इसकी असाधारण प्रतिभाओं से भली भांति परिचित ही हैं।"
.... चाचिग ने अपने अन्तर्मन की अवशता को, प्रकट करने की मुद्रा में, निवेदन करते हुए कहा-"उदारमना मन्त्रिवर ! आपकी लोकप्रसिद्ध पैनी पारखी दृष्टि की यशोगाथाएं मैंने सुनी हैं । आपके निष्कर्ष वस्तुत: अन्तिम रूप से निर्णायक होते हैं । जटिल से जटिलतम किसी भी विषय में आपके अपने बुद्धिकौशल से तथ्यातथ्य के सम्बन्ध में विचार करने के उपरान्त जिस निष्कर्ष पर आप पहुंचते हैं, उस निर्णय के सम्बन्ध में फिर किसी के लिये किसी भी प्रकार की शंका करने का किन्चिन्मात्र भी अवकाश नहीं रह जाता । ठीक इसी प्रकार इस अल्पवयस्क बालक के उज्ज्वल भविष्य के सम्बन्ध में इसके लक्षणों, गुरगावगुणों को परख कर उन सबके निष्कर्ष के रूप में आप जिस निर्णय पर पहुंचे हैं, उस निर्णय से मैं पूर्ण रूपेण सहमत हूं। होनहार
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