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- भाग ४
[ जैन धर्म का मौलिक इतिहासएक वर्ग विशेष के मानव मन मस्तिष्क में जैन धर्मावलम्बियों के विरुद्ध धर्मोन्माद का तूफान प्रबल वेग से उठा । प्रदेश में यत्र तत्र सर्वत्र सामूहिक संहार का दुष्चक्र एक लम्बे समय तक चला । जैन धर्मावलम्बियों के धर्मस्थानों को नष्टभ्रष्ट किया गया । अगणित लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए बल प्रयोग द्वारा विवश किया गया । जिन लोगों ने धर्मोन्माद में उन्मत्त उन लोगों के धर्म परिवर्तन के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया, उन्हें तत्काल मौत के घाट उतार दिया गया । विशाल तमिलनाडु प्रदेश में उठे धर्मोन्माद के प्रलयंकर तूफान की चपेट से केवल वे ही लोग बच पाये जो या तो तमिलनाडु की सीमाओं से बाहर चुपचाप छिपकर पलायन कर गये, अथवा जिन्होंने उन उन्मत्त लोगों के प्रस्ताव को स्वीकार कर शैव धर्म को अंगीकार कर लिया ।
जैसा कि पेरीयपुराण में उल्लिखित विवरणों के आधार पर इस ग्रन्थमाला के तृतीय भाग में बताया जा चुका है कि शैवों के इस धर्मोन्माद से पूर्व सम्पूर्ण तमिलनाडु प्रदेश में जैनों का वर्चस्व था । राजा, मन्त्री, राज्याधिकारी, बड़े-बड़े व्यवसायी, श्रेष्ठिवर्ग और सत्ता के प्रमुख पदों पर जैन धर्मावलम्बियों का एक प्रकार से एकाधिपत्य था । जैन संहार चरितम् के उल्लेखानुसार शिव के मन्दिरों पर ताले पड़ चुके थे । शंकर की पूजा-अर्चना तक बन्द हो गई थी । किन्तु धर्मोन्माद के इस प्रबल तूफान के फलस्वरूप जैन - बहुल तमिलनाडु प्रदेश में जैनों का एक प्रकार से प्रभाव - सा हो गया ।
संक्रामक रोग के कीटाणुओं की भांति तमिलनाडु के जन मानस में उठे धर्मोन्माद के मानव संहारकारी महारोग के कीटाणु पड़ौसी प्रदेशों के वर्ग विशेष के मानस में भी प्रविष्ट हुए। जैन धर्म के प्रबल समर्थक राष्ट्रकूट राजवंश एवं गंग राजवंश की सत्ता के समाप्त होते ही कर्णाटक प्रदेश में भी इस धर्मोन्माद ने अपना रंग जमाना प्रारम्भ किया । जैसा कि इसी अध्याय में बताया जा चुका है-चोलों के जैन विरोधी मनोभावों से प्रेरित हो वैष्णवों एवं शैवों ने जैनों के धार्मिक अनुष्ठानों में, धार्मिक स्वतन्त्रता में यहां तक कि नगाड़े बजाने के प्रश्न तक को लेकर अवरोध उत्पन्न करने प्रारम्भ किये । स्थान-स्थान पर जैन धर्मावलम्बियों के मन्दिरों से जैनों के आराध्यदेवों की मूर्तियों को बाहर फेंककर, नष्ट-भ्रष्ट कर, उनके स्थान पर शैव एवं वैष्णव धर्म के पौराणिक देवताओं की मूर्तियों को स्थापित किया जाने लगा । धर्मोन्माद का यह क्रम बड़े लम्बे समय तक कभी छुटपुट रूप में, तो कभी कुछ बड़े रूप में चलता ही रहा । अन्ततोगत्वा ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी के अन्त एवं बारहवीं शताब्दी के प्रथम चरण में मानव मानस में उठे इस धर्मोन्माद के तूफान ने उग्र रूप धारण किया । एकान्तद रमैया और कल्चुरी राज्य के विश्वास घातक मन्त्री बसवा ने लिंगायत सम्प्रदाय को सुसंगठित किया, लिंगायतों के मानस में जैनों के विरुद्ध धर्मोन्माद को कूट-कूट कर भरा और इसी धर्मोन्माद के परिणामस्वरूप लिंगायतों के अगुआ कल्चुरी राज्य के शक्तिसम्पन्न मन्त्री बसवा ने अपने
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