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महान् वृत्तिकार प्राचार्य मलयगिरि
आचार्य मलयगिरि वीर निर्वाण की सत्रहवीं तदनुसार विक्रम की बारहवीं शताब्दी के एक महान् वृत्तिकार प्राचार्य हुए हैं। अपनी लगभग एक लाख ६६ हजार ६०० से भी अधिक श्लोक प्रमाण की वृत्तियों में आपने अपना कोई परिचय नहीं दिया है । अपनी कृतियों के अन्त में
"दवापि मलयगिरिणा सिद्धि तेनाश्नुतां लोकः । "
“यदवापि मलयगिरिणा साधुजनस्तेन भवतु कृती ।"
"जीवाजीवाभिगमं विवृण्वता वापि मलयगिरिह । कुशलं तेन लभन्तां, मुनयः सिद्धान्त सद्बोधम् ।"
इस परिचय के अतिरिक्त मलयगिरि ने और कोई परिचय नहीं दिया है । श्री मलयगिरि द्वारा निर्मित ग्रागम ग्रन्थों पर निम्नलिखित वृत्तियां वर्तमान में उपलब्ध हैं
:
नाम ग्रन्थ
१. भगवती सूत्र द्वितीय शतक वृत्ति
२. राजप्रश्नीयोपांग टीका ३. जीवाभिगमोपांग टीका ४. प्रज्ञापनोपांग टीका
५. चन्द्र प्रज्ञप्त्युपांग टीका ६. सूर्यप्रज्ञप्त्युपांग टीका
७. नन्दीसूत्र टीका
८. व्यवहारसूत्रवृत्ति
६. वृहत्कल्पपीठिका वृत्ति (पूर्ण)
१०. ग्रावश्यकवृत्ति (अपूर्ण) ११. पिडनियुक्ति टीका
१२. ज्योतिष्करंड टीका १३. धर्मसंग्रहणी वृत्ति १४. कर्मप्रकृतिवृत्ति १५. पंचसंग्रहवृत्ति
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श्लोक प्रमाण
३७५०
३७००
१६०००
१६०००
६५००
६५००
७७३२
३४०००
४६००
१८०००
६७००
५०००
१००००
८०००
१८८५०
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