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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
हेमचन्द्रसूरि
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इन तथ्यों को प्रस्तुत करने के पीछे हमारा यह किंचित्मात्र भी कहने का उद्देश्य नहीं है कि प्राचार्य अभयदेवसूरि (मलधारी) और उनके शिष्य प्राचार्य हेमचन्द्रसूरि द्रव्य परम्परा कही जाने वाली भट्टारक परम्परा के प्राचार्य थे। इन सब तथ्यों को रखने के पीछे हमारा यही उद्देश्य है कि प्राचार्य अभयदेवसूरि मूलतः भट्टारक परम्परा में दीक्षित हुए थे किन्तु क्रियोद्धार के माध्यम से उत्पन्न हुई धर्म जागति की लहर ने उनके अन्तर्मन में विशद्ध श्रमणाचार की परिपालना की ललक उद्भूत की और उन्होंने द्रव्य परम्परा कही जाने वाली भट्टारक परम्परा में रहते हुए ही क्रियोद्धार किया और भट्टारक परम्परा में बने रहकर उसके द्रव्य परम्परा स्वरूप को भाव परम्परा के रूप में परिवर्तित कर दिया हो ।
प्रमाणाभाव में इस विषय में सुनिश्चित रूप से तो कुछ कहने की स्थिति अाज नहीं है। इस विषय में गहन शोध की आवश्यकता है। गहन शोध के अनन्तर इस अनुमान की पुष्टि अथवा विरोध में तथ्यों की उपलब्धि होने पर ही सुनिश्चित अभिमत अभिव्यक्त किया जा सकता है। ग्राशा है कि शोधप्रिय इतिहासवेत्ता इस विषय में शोध कर वास्तविक तथ्य को समाज के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।
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