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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग-४
यदि आप मेरे कहने के अनुसार कार्य करेंगे तो सम्पूर्ण जैन समाज में पूजनीय बन जायेंगे............।"
__श्रेष्ठि धनदेव अपना अगला वाक्य प्रारम्भ करे, इससे पूर्व ही जिनदत्तसूरि घनरव गम्भीर स्वर में बोले- "हे धनदेव ! यह क्या कह रहे हो? अागमों में तो प्रभु ने स्पष्ट कहा है कि श्रावक को गुरु के कहे अनुसार करना चाहिये। यह तो किसी भी शास्त्र में उल्लेख नहीं है कि श्रावक जिस प्रकार कहे, उसके कथनानुसार गुरु को कार्य करना चाहिये। इसके साथ ही श्रेष्ठिवर ! आप कभी यह न समझे कि केवल शिष्य-प्रशिष्यों, उपासकों अथवा अनुयायियों के विशाल परिवार के बल पर ही कोई व्यक्ति पज्य अथवा लोकमान्य बनता है, क्योंकि आज साधारणतः यह प्रत्यक्ष ही दृष्टिगोचर होता है कि- “सहैव दशभिः पुत्रैः भारं वहति गर्दभीः' अर्थात् दश पुत्रों की जननी होते हुए भी गधी उनके साथ भार ढोये फिरती है तथा “येन घनतनय युक्तापि, शूकरी गूथमश्नाति ।” श्री जिनदत्तसूरि की अटूट यात्म विश्वास से प्रोत-प्रोत इस स्पष्टोक्ति को सुनकर श्रेष्ठिमुख्य धनदेव अवाक् हो देखता ही रह गया।
तदनन्तर श्री जिनदत्तसूरि ने नागौर से अजमेर की ओर विहार किया। अजमेर के समीप पहुंचने पर वहां के श्रावकाग्रणी प्रासधर, रासल आदि ने श्रावक समूह के साथ प्राचार्यश्री की अगवानी की और उन्हें वसति में ठहराया ।, शाह पासधर, रासल आदि श्रावकों का शिष्ट-मण्डल महाराजा अर्णोराज के समक्ष उपस्थित हुया। उन्होंने अर्णोराज से निवेदन किया कि उनके गुरु श्री जिनदत्तसूरि अजमेर नगर में पधारे हैं । प्रसन्न मुद्रा में राजा ने कहा-"यह तो बड़ा कल्याणकारी शुभ संवाद है । यदि कोई कार्य हो तो कहो । अपने गुरु महाराज के दर्शन हमें भी अवश्य कराना ।" ग्रासल आदि थावकों ने निवेदन किया"स्वामिन् ! हमें एक ऐसे विशाल भूखण्ड की आवश्यकता है, जहां हम लोग मन्दिर, अन्य धर्मस्थान और पास ही चारों ओर अपने कुटुम्बीजनों के निवास के लिए भवनों का निर्माण करा सकें।"
अर्णोराज ने कहा - "नगर के दक्षिण दिग्विभाग में जो पर्वत हैं, उसके ऊपर, नीचे तलहटी में बहुत विस्तृत एवं आपके लिए हर दृष्टि से उपयुक्त भूखण्ड है, वह ले लो।" महाराज अर्णोराज के प्रति इसके लिये अान्तरिक आभार प्रकट करने के बाद श्रावक समूह जिनदत्तसूरि की सेवा में उपस्थित हुए और उन्हें प्रोराज से हुई सारी बातों का विवरण सुनाया।
सब बातें सुनने के बाद जिनदत सूरि ने श्रावकों से कहा-“महाराज अर्णोराज़ जब स्वयं यहां पाने के लिए उत्सुक हैं तो उन्हें भी इस अवसर पर अवश्य आमन्त्रित करना चाहिये । उनके यहां आने में सभी भांति लाभ ही की सम्भावना है।"
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