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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
वादिदेवसूरि
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निरर्थक होती है, उसी प्रकार बड़े परिश्रम से अजित किया गया यह तुम्हारा प्राध्यात्मिक विक्रम और पांडित्य निरर्थक सिद्ध होगा।"
क्रोधवशात् क्रुद्धा नागिन की भांति फूत्कार करती हुई उस वयोवृद्धा साध्वी के इस प्रकार के कथन को सुनकर देवसूरि ने कहा:--- "हे प्रार्ये ! तुम विषाद मत करो। उस दुविनीत का अवश्यमेव पतन होगा।"
वयोवद्धा साध्वी ने कहा:- “उस दुविनीत का पतन तो होगा अथवा नहीं, किन्तु यह सुनिश्चित है कि तुम्हारे जैसे दुर्बल सूरि के संरक्षण में रखे हुए हमारे संघ का अवश्यमेव पतन होगा।"
इस पर देवसूरि ने साध्वी को सम्बोधित करते हुए कहा :-"आप स्थिरचित्त होकर विचार करेंगी तो आपको भलीभांति विदित हो जायगा कि मोतियों का वेधन जिस प्रकार युक्ति से ही किया जाता है, ठीक उसी प्रकार इस दुविनीत का पराभव भी युक्तिपूर्वक ही किया जायगा।"
तदनन्तर अपने शिष्य माणिक्य मुनि की अोर अभिमुख हो देवसूरि ने उन्हें आदेश दिया :- “मुने । तुम इसी समय अनहिल्लपुर पत्तन के संघ को विनयपूर्ण शब्दों में मेरी ओर से निम्नलिखित रूप में एक विज्ञप्ति लिखकर भेजो :
"कर्णावतिपुरी से देवसूरि वीर जिनेश्वर को नमन करने के अनन्तर अणहिल्लपुर पट्टण के संघ को स्वस्तिवाद के साथ भक्तिपूर्वक यह विज्ञापित करते हैं कि विवादोन्मुख दिगम्बराचार्य कुमुदचन्द्र के साथ शास्त्रार्थ करने के दृढ़ संकल्प के साथ वे शीघ्र ही अराहिल्लपुर
पट्टण पहुंच रहे हैं।"
इस प्रकार का विज्ञप्ति पत्र एक द्रुतगामी दूत के माध्यम से तत्काल प्रणहिल्लपुर पट्टण के संघ के पास भेजा गया। वह चर तीन प्रहर की यात्रा में ही पट्टण पहुंच गया और संघप्रमुख को प्राचार्य देवसूरि द्वारा प्रेषित विज्ञप्तिपत्र समर्पित किया। संघ ने दूत को समुचित रूप से सम्मानित कर उसके साथ संघ का आदेशपत्र देवसूरि की सेवा में भेजा। दूत ने द्रुतगति से कर्णावती लौटकर वह संघादेश देवसूरि की सेवा में समर्पित किया, जिसमें लिखा था :
"तीर्थेश्वर को नमन करने के अनन्तर पट्टण का संघ दिगम्बराचार्य के साथ शास्त्रार्थ करने के लिये कृत संकल्प कर्णावती में विराजमान देवसूरि को आदेश करता है कि वे वादि पुगव परवादि-मद-गंजन शीघ्र ही अणहिल्लपुर पट्टण नगर में पधार जावें । वादि वेताल शान्तिसूरि के पास रह कर समस्त दर्शनों का तलस्पर्शी अध्ययन करने वाले श्री मुनिचन्द्रसूरि के आप शिष्य शिरोमरिग हैं। आज हमारे संघ का
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