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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ .
जिनदत्तसूरि
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लिये प्रतिदिन नियमित रूप से पाती थी। उन साध्वियों ने बाहड़देवी के बालक को पहली बार देखते ही समझ लिया कि आगे चल कर यह बालक बड़ा ही होनहार होगा। अपने सामुद्रिक एवं ज्योतिष ज्ञान के आधार पर उन साध्वियों की जब यह धारणा बन गई कि यह बालक भविष्य में जिनशासन की महती प्रभावना करेगा तो उन्होंने बड़े स्नेह से बाहड़देवी को समझाना प्रारम्भ किया कि यदि उनके होनहार पुत्र को श्रमणधर्म की दीक्षा दिला दी जाय तो यह जिनशासन की बहुमुखी उन्नति करने वाला महान् प्रभावक आचार्य सिद्ध होगा। प्रतिदिन के प्रयास से जब उन साध्वियों को विश्वास हो गया कि अन्ततोगत्वा बाहड़देवी अपने पुत्र को दीक्षा दिलाने के लिये सहमत हो जायेगी, तो उन्होंने धर्मदेव उपाध्याय की सेवा में यह संदेश भेजा-“यहाँ एक सुयोग्य पात्र प्राप्त हुआ है, हमारा अनुमान है कि इस सुपात्र को देख कर आपको भी प्रमोद होगा।"
__ चातुर्मास की अवधि परिसमाप्त हो चुकी थी। अतः इस समाचार के पहुंचते ही शुभ शकुन में धवलकपुर की ओर प्रस्थित हो अप्रतिहत विहार क्रम से श्री धर्मदेव उपाध्याय वहां पहुंचे। उन्होंने धवलकपुर में बाहड़देवी के उस प्रतिभाशाली पुत्र को देखा। अपनी आशाओं के शत-प्रतिशत अनुरूप उस प्रोजस्वी बालक को देख कर धर्मदेव उपाध्याय पूर्णतः तुष्ट हुए । वि० सं० ११४१ में शुभ लग्न देख कर धर्मदेव उपाध्याय ने 8 वर्ष की वय के उस बालक को श्रमणधर्म की दीक्षा प्रदान की और उन नवदीक्षित मुनि का नाम मुनि सोमचन्द्र रखा। धर्मदेव उपाध्याय ने सर्वदेवगरिण को नवदीक्षित मुनि का अभिभावक बनाते हुए उन्हें आदेश दिया कि वे नवदीक्षित मुनि की दिनचर्या, धर्मचर्या आदि के सभी कार्य नियमित रूप से समय पर करवाते रहें।
दीक्षा ग्रहण करने के दिन ही मध्याह्नोत्तर काल में सर्वदेवगणि सोमचन्द्र मुनि को अपने साथ बहिर्भूमि ले गये। शौच निवृत्यर्थ मुनि सोमचन्द्र को जीवजन्तु विहीन स्थान की ओर इंगित कर सर्वदेवगरिण आगे की ओर बढ़ गये।
बालसुलभ चांचल्य वशात् एवं जीव-अजीव आदि का बोध न होने के कारण सोमचन्द्रमुनि ने पास ही के खेत से चने के कतिपय पौधे जड़ सहित उखाड़ लिये । शौच निवृत्ति के पश्चात् सोमचन्द्र के पास लौट कर सर्वदेवगरिग ने उन मुनि के पास चने के जड़ से उखाड़े गये पौधे देखे तो नवदीक्षित मुनि को शिक्षा देने के अभिप्राय से बालक मुनि की मुख वस्त्रिका और रजोहरण लेते हुए कहा-"चला जा अपने घर, मुनि बनने के अनन्तर भी क्या कोई खेतों के पौधे उखाड़ता है ? कभी नहीं।"
बालक सोमचन्द्रमुनि ने तत्क्षण अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा"मेरी मुखवस्त्रिका और रजोहरण मुझसे मेरे अपराध के दण्ड स्वरूप आपने ले लिये,
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