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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
गया है कि जिनशासन की अधिष्ठात्री देवी ने अभयदेवसूरि के समक्ष उपस्थित होकर उन्हें प्राचारांग और सूत्रकृतांग को छोड़ स्थानांग आदि शेष : अंग शास्त्रों पर वृत्तियों का निर्माण करने की प्रार्थना की । उक्त दोनों ग्रन्थों में उल्लेख है कि शासनाधिष्ठात्री देवी के समक्ष अभयदेवसूरि ने इस प्रकार की आशंका प्रकट की कि गूढार्थ भरे एकादशांगी के इन नौ अंग शास्त्रों के सूत्रों, शब्दों आदि की व्याख्या करने में उनके जैसा अल्पज्ञ कैसे सक्षम हो सकता है ? गूढार्थ भरे संशयास्पद शब्दों या स्थलों की व्याख्या करते समय यदि उनके द्वारा अज्ञानवश शास्त्र की मूल भावना के विपरीत व्याख्या कर दी गई तो उस उत्सूत्र प्ररूपणा के अपराध से उन्हें अनन्त अनन्त काल तक संसार की नरक, तिर्यंच निगोद आदि योनियों में भटकना पड़ सकता है । इन दोनों ग्रन्थों के उल्लेख के अनुसार शासनदेवी ने अभयदेव को आश्वस्त करते हुए कहा-"जहां कहीं तुम्हें शंका हो, मेरा स्मरण कर लेना। मैं तुम्हारी सब शंकाओं को सुनकर महाविदेह क्षेत्र में विराजित तीर्थंकर प्रभु सीमन्धर स्वामी के समक्ष उपस्थित हो, उनसे शंकाओं का पूर्ण रूपेण निराकरण प्राप्त कर तुम्हें उन से भली-भांति अवगत करा दूंगी।" शासन देवी द्वारा प्रदत्त इस आश्वासन से अभयदेवसूरि सन्तुष्ट हुए और उन्होंने नवांगी की वृत्तियों की रचना प्रारम्भ कर दी । उक्त दोनों ग्रन्थों में यह भी स्पष्ट उल्लेख है कि नवांगी की रचना करते समय अभयदेवसूरि को जिन जिन स्थलों पर शंका उत्पन्न हुई, किंचिन्मात्र भी सन्देह हुआ, उन्होंने तत्काल शासनदेवता का स्मरण किया और उसने सीमन्धर स्वामी से उन शंकाओं का समाधान प्राप्त कर उन समाधानों से श्री अभयदेवसूरि को सदा अवगत कर अपनी प्रतिज्ञा का पूरी तरह से पालन किया ।'
यहां प्रत्येक विज्ञ के मन में सहज ही यह जिज्ञासा उत्पन्न हो सकती है कि खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली और प्रभावक चरित्र के उल्लेखानुसार जिन शासनअधिष्ठात्री देवी ने अभयदेवसूरि की शंकाओं को सीमन्धर स्वामी के समक्ष उपस्थित कर प्रभु से उन शंकाओं का समाधान या, अभयदेवसूरि की वृत्तियों के लेखन के समय सहायता की होती तो अभयदेवसूरि सुनिश्चित रूप से इस प्रकार के चमत्कारिक तथ्य का सभी वृत्तियों अथवा किसी एक वृत्ति के आदि में नहीं तो कम से कम अन्त में दी गई प्रशास्ति में तो अवश्यमेव उल्लेख करते । स्थानांगादि १. (क) ............निरवाह्यत देव्या च, प्रतिज्ञा या कृता पुरा ।।११३।।
–प्रभावकचरित्र पृष्ठ १६४ (ख) तत्स्थानात् पत्तने समायाताः । करडिहट्टी वसतौ स्थिताः । तत्र स्थितनवांगानां स्थानांग प्रभृतीनां वृत्तय, कृताः । यत्र सन्देह उत्पद्यते स्मरण प्रस्तावे, जया-विजयाजयन्ति-अपराजिता-देवताः स्मृताः सत्यस्तीर्थंकर पार्वे महाविदेहेगत्वा तान् पृष्ट्वा निस्सन्देहं तत्स्थानम् कुर्वन्ति ।
-खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली पृष्ठ ७ ।
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