________________
सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
अभयदेवसूरि
[ १६७
स्वाध्याय करती हुई एक साध्वी ने देवों के मुख से उस गाथा को सुना । परम्परा से समागत इस गाथा को गुर्वावलिकार ने गुर्वावली में निबद्ध किया ।
इन सब उल्लेखों से यह प्रकट होता है कि अभयदेवसूरि प्रति मृदु मंजुल एवं जनमनाकर्षक प्रकृति के अपने युग के अप्रतिम उद्भट विद्वान् और जन-जन को प्रभावित करने वाले लोकप्रिय आचार्य थे ।
श्री अभयदेवसूरि ने नवअंगों पर वृत्तियों की एवं परमोपयोगी साहित्यग्रन्थों की रचना कर जिनशासन की जो महती सेवा की है, वह जैन इतिहास में सदा स्वर्णाक्षरों में लिखी जायेगी, आगमों के तल स्पर्शी ज्ञान का अर्जन करने के अभिषेक भव्य प्राणियों द्वारा निःसीम श्रद्धा के साथ स्मरण की जाती रहेगी । अभयदेवसूरि द्वारा जो विपुल साहित्य का निर्माण किया गया, उसका सार रूप में परिचय यहां दिया जा रहा है :
१.
२.
३.
स्थानांग वृत्ति -- एकादशांगी के तृतीय अंग स्थानांग पर आपने १४२५० श्लोक प्रमारण वृत्ति का विक्रम सं. १९२० में निर्माण किया । इस कार्य में संविग्न पक्ष के आचार्य अजितसिंह के शिष्य यशोदेवगरण ने आपकी सहायता की । इस वृत्ति को आद्योपान्त देखकर द्रोणाचार्य आदि अनेक विद्वानों ने सराहना की । अभयदेवसूरि ने स्थानांग वृत्ति के निर्माणस्थल का उल्लेख नहीं किया है ।
५.
समवायांग वृत्ति - चौथे अंग समवायांग पर आपने ६५७५ श्लोक प्रमाण वृत्ति का विक्रम सं० १९२० में अरण हिल्लपुर पट्टण में निर्माण किया ।
व्याख्या प्रज्ञप्ति वृत्ति - एकादशांगी के पंचम अंग व्याख्या प्रज्ञप्ति ( वियाह परणत्ति - भगवतीसूत्र ) पर आपने १८६१६ श्लोक प्रमाण वृत्ति की विक्रम सं. २०२८ में अणहिल्लपुर पट्टण नगर में रचना सम्पन्न की ।
४. ज्ञाताधर्मकथांगवृत्ति - एकादशांगी के छठे अंग ज्ञाताधर्म कथा पर आपने ३८०० श्लोक प्रमाण वृत्ति की रचना विक्रम सं. ११२० की विजयादशमी के दिन अराहिल्लपुर पट्टण नगर में सम्पन्न की। इस वृत्ति का निर्वृतक कुल के प्राचार्य द्रोणसूरि ने संशोधन किया ।
Jain Education International
1
उपासकदशांग वृत्ति - एकादशांगी के सातवें अंग उपासक दशांग पर आपने १८१२ श्लोक प्रमाण वृत्ति की रचना सम्पन्न की । इसके निर्माण स्थल व सम्वत् का भी वृत्तिकार ने कोई उल्लेख नहीं किया है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org