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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] अभयदेवसूरि से वन्दना की। उन्होंने उसी समय खड़े ही खड़े (प्रभु के प्रभाव से) तत्काल "जय तिहुयण" नामक नमस्कार द्वात्रिंशिका की रचना करते हए प्रभु की स्तुति की। स्तुति के प्रभाव से अनेक देवगण वहां उपस्थित हुए और उन्होंने अभयदेवसूरि से निवेदन किया-"अन्तिम दो नमस्कारों को, अर्थात् अन्तिम दो गाथाओं को आप इस स्तोत्र से निकाल दीजिये क्योंकि उन दो गाथाओं के अमोघ प्रभाव के कारण जहां कहीं भी, जिस किसी के द्वारा इन दोनों गाथाओं का उच्चारण किये जाने पर हम सबको तत्काल स्मरण करने वाले के समक्ष उपस्थित होना पड़ेगा और इस प्रकार जब कभी, जिस किसी के समक्ष तत्काल उपस्थित होना हमारे लिये कष्टकर ही सिद्ध होगा । वस्तुतः हम तीस गाथाओं द्वारा प्रभु को नमस्कार करने पर भी उसका सब प्रकार से भला कर देंगे।
अभयदेवसूरि ने उन देवों के कथनानुसार उन अन्तिम दोनों गाथाओं को 'जय तिहुयण' स्तोत्र से अलग कर दिया।
तदनन्तर उपस्थित श्रावक समूह के साथ देव वन्दन किया। श्रावक समुदाय ने पार्श्व प्रभु की प्रतिमा का स्नान विलेपन, आभरण विभूषा आदि से पूजन किया। वहीं पर पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा की स्थापना कर दी गई और मन्दिर का भी निर्माण करा दिया गया । सब लोगों की मनोवांछित अभिलाषाओं की पूर्ति कर देने के कारण उस मन्दिर की "अभयदेवसूरि द्वारा स्थापित पार्श्वनाथ तीर्थ" नाम से दिगदिगन्त में ख्याति फैल गई।
उस नवनिर्मितं-पार्श्वनाथ तीर्थ से अभयदेवसूरि पाटन में पधारे और वहां “करडिहट्टी" नामक वस्ती में विराजे । वहां रहते हुए अभयदेवसूरि ने स्थानांग प्रभृति नौ अंग शास्त्रों पर नौ वृत्तियों की रचना की। वृत्तियों की रचना करते समय उन्हें प्रागमसूत्रों के अर्थ एवं व्याख्या के सम्बन्ध में जहां कहीं शंका उत्पन्न होती, वहां उनके द्वारा स्मरण मात्र से ही जया, विजया, जयन्ती नामक देवियां महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर की सेवा में उपस्थित हो उन सभी शंकाओं का उनसे समाधान प्राप्त कर अभयदेयसूरि के सन्देहों का निवारण कर देतीं।""
प्रभावक चरित्रकार प्रभाचन्द्रसूरि और खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली द्वारा नवांगी वृत्ति की रचना के सम्बन्ध में प्रस्तुत किये गये विवरणों में सबसे बड़ा अन्तर यह है कि खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावलीकार ने कुष्ठ रोग की उत्पत्ति के पश्चात शासन देवता के उनके समक्ष उपस्थित होने, शासन देवी द्वारा नौ अंगों पर वृत्तियों के निर्माण की प्रार्थना, कुष्ठ रोग के निवारण का शासन देवी द्वारा उपाय बताने और देवी के निर्देशानुसार स्तम्भनकपुर के पास पार्श्वनाथ की प्रतिमा के वन्दन,
१. खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली, पृ. ६-७ ।
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