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. [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ अर्थात् सारांश यह है कि तपा आदि सभी गच्छों के प्राचार्यों तथा साधुओं को मन्दिर से नीचे ही रोक कर श्री जिनमहेन्द्रसूरि ने सब संघपतियों के साथ मूलनायक के मन्दिर के समक्ष जाकर विधिपूर्वक उन संघपतियों के कण्ठों में मालाएं पहनाईं। अन्य संघों के प्राचार्यों के मन की अभिलाषाएं ठीक उसी भांति मन में ही रह गईं, जिस प्रकार कि सूर्य को कभी उदित न होने देने की उल्लू की मनोकामना अनादि काल से उसके मन में ही रहती आई है । यह खरतरगच्छ के सूर्य तुल्य जिन महेन्द्रसूरि के उदय तेज का ही प्रताप था कि अन्य सब गच्छों के प्राचार्यों
और साधुओं तथा उनके अनुयायियों के विरोध के उपरान्त भी खरतरगच्छ के आचार्य जिन महेन्द्रसूरि ने दादाजी की मूर्ति के समक्ष ही संघपतियों को अपने स्वयं के हाथ से ही मालाएं पहना दीं। संघपति ने अपने गुरु श्री जिन महेन्द्रसूरि को उनके समग्र साधु समूह के साथ अपने घर पर बुलाकर स्वर्ण मुद्राओं से उनकी नवांग पूजा की और उन्हें (अपने गुरु श्री जिन महेन्द्रसूरि को १०,०००/- रुपया और एक सुन्दर पालकी समस्त संघ के समक्ष भेंट की । संघाध्यक्ष ने सभी गच्छों के साधुओं, वाचकों एवं पाठकों को रौप्य मुद्राएं, स्वर्ण मुद्राएं और सभी वस्त्र भेंट किये।
स्वयं श्री जिन महेन्द्रसूरि (खरतरगच्छ के आचार्य) ने भी चौरासी गच्छों के प्राचार्यों और बारह सौ साधुओं को दो-दो चांदी के सिक्के और महावस्त्र भेंट किये । इस अवसर पर गुरु श्री जिन महेन्द्रसूरि ने बहुत बड़ी धनराशि खर्च की।"
इससे स्पष्टरूपेण प्रकट होता है कि १९वीं शताब्दी के प्राचार्यों और साधु जीवन का क्या रूप था। कितना अन्तर आ गया था महान् क्रियोद्धारक वर्द्धमानसूरि द्वारा पुनः प्रतिष्ठित किये गये श्रमण जीवन में और उनके उत्तरवर्ती पट्टधर प्राचार्यों के श्रमण जीवन में ?
किन्तु इस प्रकार की स्थिति सदा नहीं रही। शुद्ध श्रमण जीवन का जो पथ वर्द्धमानसूरि ने जैन जगत् को दिखा दिया था, न केवल खरतरगच्छ के ही अपितु अनेक गच्छों के आत्मार्थी प्राचार्यों और मोक्ष मार्ग के सच्चे पथिक श्रमणों ने उसे नहीं भूलने-भुलाने दिया। वे समय-समय पर सबको सावधान करते ही रहे। श्रमणों ने ही नहीं, बल्कि कई गृहस्थ श्रमणोपासकों ने भी लोगों को समय-समय पर सावधान किया, इस बात का इतिहास साक्षी है।
प्रत्येक विज्ञ के अन्तर्मन में इस प्रकार की जिज्ञासा का उत्पन्न होना सहज स्वाभाविक ही है कि महापुरुषों द्वारा क्रियोद्धार या धर्म जागरण के माध्यम से सर्वज्ञ प्रणीत आगमों के उल्लेखानुसार धार्मिक क्रियाओं का प्रशस्त पथ प्रदर्शित
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