Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
View full book text
________________
विषय प्रवेश
१३
उपनिषद् आत्मा के विभिन्न स्तरों के उल्लेख हमें उपनिषदों में प्राप्त होते हैं। तैत्तिरीयोपनिषद् में आत्मा के अन्नमयकोश, प्राणमयकोश, मनोमयकोश, विज्ञानमयकोश और आनन्दमयकोश - ऐसे पाँच स्तरों का विवेचन उपलब्ध होता है;२० जो क्रमशः सूक्ष्म-सूक्ष्म हैं। उपनिषदों में आत्मा को देह से विलक्षण, मन से भी भिन्न, विभु, व्यापक और अपरिणामी भी बताया गया है। उसे वचन से अगम्य कहते हुए नेति-नेति के द्वारा बताया गया है।
सांख्यदर्शन सांख्यदर्शन में आत्मा को नित्य, निष्क्रिय, सर्वगत एवं चित्स्वरूप, अमूर्त, चेतन, अकर्ता, भोक्ता, निर्गुण और सूक्ष्म रूप माना गया है। सांख्यदर्शन में आत्मा के लिए पुरुष शब्द का प्रयोग हुआ है।३२
न्यायदर्शन ___ न्यायदर्शन में जीव शब्द के स्थान पर आत्मा शब्द मिलता है। ईर्ष्या, द्वेष, प्रत्यय, सुख, दुःख, ज्ञानादि आत्मा के आगन्तुक लक्षण बताये गये हैं। ज्ञानादि को आत्मा का स्वभाव न मानकर उसका विभाव माना है।३३
वेदान्तदर्शन वेदान्त दार्शनिकों के अनुसार आत्मा एक है, किन्तु शरीरादि उपाधियों के कारण वह भिन्न प्रकार से दृष्टिगोचर होती है। यह दर्शन एकतत्त्ववादी है। ब्रह्मबिन्दु उपनिषद् में निम्न प्रकार से बताया गया है - "एक एवं ही भूतात्मा भूते भूते व्यवस्थितः” । ___अर्थात् एक ही आत्मा प्रत्येक शरीर में भिन्न-भिन्न रूप में अभिव्यक्त होती है।४
३० तैत्तिरीयोपनिषद् २/१-५ । " केनोपनिषद् १/४/६ ।
श्रावकाचार (अमितगति) ४/३५ । ३३ (क) पंचास्तिकाय ४८ ।
(ख) तत्त्वार्थवार्तिक १/१, ६ । ३४ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक १/४/३०, ३३ एवं ३४ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org