Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
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जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा
१. सामायिक; ४. प्रतिक्रमण;
२. चतुर्विंशतिस्तव; ५. कायोत्सर्ग; और
३. वन्दन; ६. प्रत्याख्यान ।
८. समाचारी
सामुदायिक जीवन का व्यवस्थित रूप से निर्वाह करना बहुत बड़ी कला है। मुनियों को सामुदायिक जीवन कैसे जीना है, इसके लिए एक समाचारी अर्थात् आचार व्यवस्था बनाई गई है। समाचारी शब्द का अर्थ करते हुए उत्तराध्ययनसूत्र की टीका में कहा गया है कि साधु जीवन की कर्तव्यता अर्थात् संघीय जीवन एवं व्यावहारिक साधना की आचार-संहिता समाचारी है।
ओघनियुक्ति टीका में सम्यक् आचरण को समाचारी कहा है। अतः शिष्टजनों के द्वारा आचरित क्रिया-कलाप समाचारी है।१६ दिगम्बर साहित्य में समाचारी के स्थान पर समाचार शब्द उपलब्ध होता है।२७ मूलाचार में इसके चार अर्थ निम्न हैं :
१. समता का आचार; २. सम्यक् आचार; ३. सम आचार; और ४. समानता का आचार ।२१८
दशविध समाचारी
उत्तराध्ययनसूत्र के २६वें अध्याय एवं अन्य ग्रन्थों में भी मुनि-आचार के सन्दर्भ में दशविध समाचारी के नाम निम्नानुसार हैं :२१६
२१४
उत्तराध्ययनसूत्र : दार्शनिक अनुशीलन एवं वर्तमान परिपेक्ष्य में उसका महत्त्व' पृ. ४१०-१२ ।
-साध्वी डॉ. विनीतप्रज्ञाश्री । उत्तराध्ययनसूत्र टीका प्न ५३४ । ओघनियुक्ति टीका (उद्धृत उत्तराध्ययनसूत्र पृ. ४३६ - मधुकरमुनि) । अनुयोगद्वारसूत्र २८/६ । मूलाचार ४/२ । (क) उत्तराध्ययनसूत्र २६/२ एवं ४ से ११; (ख)पंचाषप्रकरण १२ एवं १८ पृ. २१२; (ग) दशवैकालिकसूत्र ६/२ एवं २२; और (घ) आवश्यकनियुक्ति ६७७ ।
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