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जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा
६. जैन और बौद्ध, दोनों ही परम्पराएँ यह स्वीकार करती हैं कि
गर्भकाल के समय भगवान की माता को कष्ट न हो, इसलिए देवगण उनकी रक्षा करते हैं। दोनों की माताएँ सदाचारी और
शीलवान होती हैं। १०. दोनों परम्पराओं का मानना है कि बुद्ध एवं तीर्थंकर गर्भावास
में जब माता की कुक्षि में निवास करते हैं, तब वहाँ श्लेष्णा,
रूधिर आदि गन्दगियों का अभाव हो जाता है। ११. तीर्थंकर और बुद्ध की गर्भक्रान्ति के पश्चात् उनके परिवार में
धन-धान्य की अभिवृद्धि होती है। १२. बुद्ध के विषय में यह मान्यता है कि जब वे कक्षि से बाहर __ आते हैं तो पृथ्वी पर आने से पूर्व उन्हें देवपुत्र ले लेते हैं।
दो उदक धाराएँ उनकी माँ का अभिषेक करती हैं। जैन परम्परा का मानना है कि तीर्थंकर के जन्म होने पर इन्द्र एवं देवगण उन्हें मेरूपर्वत पर ले जाकर अभिषेक करते हुए महोत्सव मनाते हैं।
५.६ तीर्थंकर एवं बुद्ध का अन्तर
मान्यताओं में उपरोक्त समानताएँ होने पर भी निम्न कुछ महत्वपूर्ण अन्तर भी हैं : १. बौद्ध परम्परा के अनुसार बोधिसत्व का जन्म होने पर उनकी
माता सातवें दिन स्वर्गवासी हो जाती है । २. बौद्ध परम्परा में बोधिसत्व की माता खड़े-खड़े प्रसव करती
३. बौद्ध परम्परा में बोधिसत्व अपने जन्म के साथ ही सात
कदम उत्तर दिशा की ओर चलता है और लोक में श्रेष्ठता
का उद्घोष करता है। उपरोक्त तीनों ही बातें जैन परम्परा में स्वीकार नहीं की गई हैं। ४. जैन परम्परा में तीर्थंकर के अभिनिष्क्रमण के पूर्व ६
लोकान्तिकदेव उन्हें प्रव्रज्या के लिए प्रार्थना करते हैं। बौद्ध मान्यतानुसार बुद्ध की प्रव्रज्या के समय नहीं अपितु अर्हत् बनने के पश्चात् महाब्रह्मा लोक-मंगल के लिए धर्म-चक्र प्रवर्तन हेतु प्रार्थना करते हैं। ५. बौद्ध परम्परा में बुद्ध के सशरीर तुषित देवलोक और
शुद्धावास देवलोक में जाने का उल्लेख है। ऐसी मान्यता
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