Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP

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Page 471
________________ ४१६ जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा त्रिविध आत्मा की अवधारणा के सम्पूरक हैं। अन्तिम सप्तम अध्याय में आधुनिक मनोविज्ञान के अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी व्यक्तित्वों की तुलना अन्तरात्मा और बहिरात्मा से की गई है और उसमें यह देखने का प्रयत्न किया गया है कि दोनों अवधारणाओं में किस सीमा तक समरूपताएँ और विभिन्नताएँ रही हुई हैं। इसी क्रम में आगे आधुनिक मनोविश्लेषणवादी मनोविज्ञान के वासनात्मक अहम् (id), विवेकात्मक अहम् (Ego) और आदर्शात्मक अहम् (Super Ego) की अवधारणा और जैनदर्शन की त्रिविध आत्मा की अवधारणा की तुलना करते हुए हम यह पाते हैं कि यद्यपि दोनों अवधारणाओं के आधार भिन्न हैं, किन्तु उनमें महत्त्वपूर्ण समरूपता भी है। बहिरात्मा वासनात्मक अहम् की प्रतिनिधि है तो अन्तरात्मा विवेकात्मक अहम् की प्रतिनिधि है और आदर्शात्मा आत्मा में निहित परमात्मा स्वयं का ही प्रतिबिम्ब है। इस प्रकार प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में हमने त्रिविध आत्मा की अवधारणा के विविध पक्षों को विश्लेषित और विवेचित करते हुए उनके सम्यक् मूल्यांकण का प्रयत्न किया है। हम अपने इस प्रयत्न में कहाँ तक सफल और असफल हुए हैं, यह निर्णय तो विद्वत् समाज को करना है। हम अपनी सीमित क्षमताओं और योग्यताओं के आधार पर जो कुछ कर सके हैं, वह विद्वानों के मूल्यांकण के लिए प्रस्तुत है। के सम्यक् मफल और असी सीमित क्षमता ।। समाप्त।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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