Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
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आधुनिक मनोविज्ञान और त्रिविध आत्मा की अवधारणा
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इन्द्रियों के द्वारा ही संचालित होता है। मन और इन्द्रियाँ बिना उचित-अनुचित का विचार किये अपनी वासनाओं की पूर्ति का प्रयत्न करती रहती हैं। यहाँ मनुष्य का व्यवहार पशु जगत् के समान मूलप्रवृत्यात्मक होता है। ___ तुलनात्मकदृष्टि से यदि हम विचार करें तो जैनदर्शन में बहिरात्मा के जो लक्षण बताए गये हैं, वे फ्रायड की इस अबोधात्मा या इड के समरूप ही हैं। वासनाप्रधान और भोगप्रधान जीवनदृष्टि बहिरात्मा का मुख्य लक्षण है और यही बात अबोधात्मा या इड के सम्बन्ध में भी सत्य है।
बोधात्मा (EGO)
फ्रायड के अनुसार बोधात्मा आत्मचेतना की अवस्था है। दूसरे शब्दों में कहें तो वह आत्मसजगता की अवस्था है। इसे बोधात्मा इसलिए ही कहा जाता है कि यह किसी भी इच्छा की पूर्ति के प्रयत्नों के पूर्व उनके परिणामों पर विचार करने के लिये बाध्य करती है। बोधात्मा के समक्ष जहाँ एक ओर अबोधात्मा या वासनात्मक अहम् अपनी इच्छाओं और आकाँक्षाओं को प्रस्तुत करता है, तो दूसरी ओर आदर्शात्मा व्यवहार के आदर्शों को या क्या उचित है और क्या अनुचित है, इसकी कसौटी को प्रस्तुत करती है। बोधात्मा का कार्य इन दोनों ही पक्षों को जानकर उनके मध्य समन्वय उत्पन्न करने का होता है। फ्रायड के अनुसार बोधात्मा, अबोधात्मा से उत्पन्न इच्छाओं तथा आदर्शात्मा के द्वारा प्रस्तुत आदर्शों के मध्य एक समन्वय करती हुई व्यक्ति और उसके वातावरण के बीच एक सामंजस्य स्थापित करती है। इसीलिए बोधात्मा को व्यवहार का मुख्य प्रशासक कहा गया है। यद्यपि फ्रायड यह मानता है कि बोधात्मा का सम्बन्ध मुख्यतः बाह्य वातावरण से ही रहता है - नैतिकता या धर्म से नहीं। किन्तु हमारी दृष्टि में बोधात्मा का सम्बन्ध मात्र बाह्य वातावरण से ही नहीं रहता। उसका सम्बन्ध धर्म, नैतिकता, सभ्यता और संस्कृति द्वारा मान्य उच्च आदर्शों से भी है। बोधात्मा को जो सामंजस्य
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