Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
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परमात्मा का स्वरूप लक्षण, और प्रकार
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६.
जैन परम्परा में नहीं है। तीर्थकर के प्रवचन में देव स्वर्ग से आते हैं और समवसरण की रचना करते हैं। बौद्ध परम्परानुसार तीर्थकों के आग्रह पर बुद्ध द्वारा स्वयं प्रातिहार्य दिखाने की चर्चा उपलब्ध होती है। जैन परम्परा में स्वयं तीर्थकर द्वारा किसी प्रातिहार्य के दिखाने का विवेचन प्राप्त नहीं होता। किन्तु बौद्ध परम्परा में ऐसा भी बताया गया है कि भिक्षु के लिए चमत्कार का निषेध है। जैन परम्परा की मान्यता है कि तीर्थकर परमात्मा की महत्ता को स्थापित करने के लिए देवगण प्रातिहार्य की रचना करते हैं।
५.७ तीर्थंकर एवं अवतार की समानता
तीर्थकर एवं अवतार में निम्न समानताएँ हैं : १. जैन धर्म ने तीर्थंकर को अवतार के समान ही स्वीकार किया
है। जैनों ने तीर्थंकर को देवाधिदेव वीतराग परमात्मा के रूप में
स्वीकार किया है। २. जैन परम्परा में जिन सहस्रनाम के रूप में तीर्थकर के सहन
नामों का उल्लेख है, वह विष्णु के सहननाम के समान ही है। पुष्पदन्त के महापुराण में तीर्थकर को अनेक स्थलों पर विष्णु नाम से सम्बोधित किया गया है। महापुराण में ऋषभ को
आदि वराहरूप में पृथ्वी का उद्धारक बताया गया है।७५ ३. तीर्थकर और अवतार दोनों ही धर्म के संस्थापक कहे गए हैं।
हम इस सम्बन्ध में पूर्व में विस्तृत चर्चा कर चुके हैं जिसके
अनुसार दोनों के प्रयोजन समान हैं।७६ . ४. अवतार के समान तीर्थकर को भी सर्वज्ञ एवं अनन्त
शक्ति-सम्पन्न माना गया है। जैन कथा साहित्य में ऐसा उल्लेख है कि तीर्थकर अरिष्टनेमि ने कृष्ण के शंख को बजा दिया था और द्वन्द युद्ध में कृष्ण उन्हें पराजित नहीं कर सके।७७
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-महापुराण १-१०, ५-१० ।
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परमात्मप्रकाश पृ. १०२ । __ 'आइवराह उद्धरिय खोणि'
भागवत ५/३/२०; ५/६, १२ । तिलोयपन्नति ४/६२८ ।
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