________________
परमात्मा का स्वरूप लक्षण, और प्रकार
की परम्परा के समाप्त होने पर देवों द्वारा उनका दाहसंस्कार कर निर्वाणोत्सव मनाया जाता है । देवगण वहाँ से नन्दीश्वर द्वीप में जाकर अष्टाहिका महोत्सव मनाते हैं । इस प्रकार जैन परम्परा में तीर्थंकर परमात्मा के उपरोक्त पंच कल्याणक माने गये हैं
I
५.४.२ तीर्थंकर परमात्मा का निर्दोष व्यक्तित्व
श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार तीर्थंकर परमात्मा को निम्न १८ दोषों से रहित माना गया है १६६ :
१. दानान्तराय; ४. भोगान्तराय;
७. अज्ञान;
१०. हास्य; १३. शोक;
१६. राग;
१७०
कुछ अन्य श्वेताम्बर १८ दोषों से रहित बताया गया है ' . १६६
१. हिंसा;
५. हास्य;
६. भय; १३. लोभ; १७. निद्रा; और
२. लाभान्तराय;
५. उपभोगान्तराय; ८. अविरति; ११. रति;
१. क्षुधा; ५. मान;
६. अज्ञान;
१४. भय; १७. द्वेष; और
Jain Education International
आचार्यों के अनुसार
:
२. मृषावाद; ३. चोरी
६. रति; १०. क्रोध;
१४. मंद; १८. प्रेम ।
दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ नियमसार में तीर्थंकर को निम्न १८ दोषों से रहित माना गया है
:
२. तृषा;
६. माया; १०. मृत्यु;
३४३
३. वीर्यान्तराय ६. मिथ्यात्व;
६. कामेच्छा;
१२. अरति;
३. भय;
७. लोभ;
११. स्वेद;
७. अरति;
४. कामक्रीड़ा; ८. शोक;
११. मान;
१२. माया;
१५. मत्सर; १६. अज्ञान;
१५. जुगुप्सा; १८. निद्रा ।
तीर्थंकर को निम्न
For Private & Personal Use Only
१६८ ‘पंचेव अन्तराया, मिच्छतमनाणामविरइ कामो ।
हासछग रागदोसा, निदाऽटठारस इमे दोसा ।। १६२ । । ' - राजेन्द्र अभिधान कोश पृ. २४८ ।
१६६ " हिंसाऽऽइतिगं कीला, हासाऽऽइपंचगं च चउकसाया ।
-वही पृ. २४८ |
मयमच्छर अन्नाणा, निद्दा पिम्मं इअ व दोसा ।। १६३ ।। ' 'छुहतण्हभीरुरोसो रागो, मोहो चिंता जरा रूजा मिच्चू । सदं खेद मदो रइ विहियाणिद्दाजणुव्वेगो ।। ६ ।।'
-नियमसार ।
४. रोष (क्रोध);
८. मत्सर; १२. खेद;
www.jainelibrary.org