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परमात्मा का स्वरूप लक्षण, और प्रकार
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चरमशरीरी जीव के जन्म को कल्याणक के रूप में नहीं मनाया जाता।
पंचकल्याणक में जन्मकल्याणक का द्वितीय स्थान है। जब सर्वग्रह उच्च स्थिति में हों; शुद्ध निमित्त प्राप्त हुए हों; छत्रादि शुभ जन्म योग आए हों और शुभ लग्न का नवांश हो; तब तीर्थकर (अरिहन्त) परमात्मा को माताश्री जन्म देती है।६२ ये उच्च ग्रह निम्न प्रकार के होते हैं :
"मेष राशि का सूर्य (दशम अंश); वृषभ राशि का चन्द्र (३ अंश); मकर राशि का मंगल (२८ अंश); मीन राशि का शुक्र (२७ अंश); और तुला राशि का शनि (२० अंश)।" । __ इसी प्रकार राशियों के साथ ग्रहों का उच्च सम्बन्ध होता है।५२ तीर्थकर परमात्मा के जन्म के समय प्राकृतिक वातावरण अद्वितीय, अपूर्व एवं असदृश्य होता है; देव-दुन्दुभि बजती है और वायु अनुकूल होकर दक्षिणावर्त मन्द-मन्द बहती है। शुभ शकुन परिलक्षित होता है। उस समय पंचवर्णी पुष्पों की वृष्टि होती है। अन्य माताओं की तरह तीर्थंकरों की माता को प्रसव-पीड़ा नहीं होती; क्योंकि तीर्थंकरों का यह स्वाभाविक प्रभाव है : “स एव तीर्थनाथानां प्रभावो हि स्वभावजः”।६४ जन्म के समय ५६ दिक्कुमारियों का आगमन होता है। पांच अप्सराओं द्वारा प्रभु का परिपालन होता है। अंगुष्ठ में देवों के द्वारा अमृत की स्थापना की जाती है। सौधर्मेन्द्र जब प्रभु को यथास्थान रखते हैं तब देव-दूष्य युगल एवं कुण्डल युगल उपधान (तकिये) के नीचे रखते हैं। सुशोभित श्रीदामकाण्ड नामक कण्दुक उनके पास रखकर वे वहाँ से लौट आते हैं। इन्द्र की आज्ञा से वैश्रमणदेव एवं जम्भृकदेवों के द्वारा ३२ करोड़ हिरण्य; ३१ करोड़ सुवर्ण; ३७ करोड़ रत्न; ३२ करोड़ नन्द नामक वृत्तासन; ३२ करोड़ भद्रासन तथा अन्य विशिष्ट वस्तुओं से तीर्थकर के भवन को अलंकृत करते हैं। जन्म महोत्सव करके नन्दीश्वर द्वीप में अष्टाहिका महोत्सव करते हैं।
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(क) ज्ञातासूत्र अ. ८; (ख) कल्पसूत्र ६३; (ग) आदिनाथ चरित्र पृ. ११७ । अरिहन्त पृ. १४१ । अजितनाथ चरित्र पर्व २, सर्ग ३, श्लोक १२५ ।
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-डॉ. दिव्यप्रभाश्रीजी ।
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