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परमात्मा का स्वरूप लक्षण, और प्रकार
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कल्पनातीत है । वे निर्विकल्प, निरंजन और निष्कलंक हैं तथा आनन्द से परिपूर्ण और अनन्त वीर्य से सम्पन्न हैं । १०२ उन्होंने संसार समुद्र को पार कर लिया है और वे १०३ हैं ।" कृत्य कृत्य उनके सुखों की कोई उपमा देना कठिन है, जिस प्रकार आकाश और काल का अन्त नहीं है। वे सिद्ध परमात्मा त्रैलोक्य में तिलक स्वरूप समस्त विषयों से रहित निरद्वन्द्व, अविनाशी, अतीन्द्रिय और अपने आत्म स्वभाव में रमण करने वाले उपमा रहित हैं । १०६
५.२.७ अमितगति के योगसारप्राभृत में परमात्मा
का स्वरूप
योगसारप्राभृत में आचार्य अमितगति आत्मा और परमात्मा के तादात्म्य को स्वीकार करते हुए लिखते हैं कि घातीकर्मों का क्षय करने से आत्मा का जो शुद्ध स्वरूप प्रकट होता है उसे परमात्मा कहा जाता है ।" जैसे सूर्योदय होते ही रात्रि का घोर अन्धकार
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१०२ (निष्कलः करणातीतो निर्विकल्पो निरंजनः । अनन्तवीर्यतापन्नो नित्यानन्दाभिनन्दितः ।। ७३ ।। ' १०३ 'परमेष्टी परंज्योतिः परपूर्णः सनातनः । संसारसागरोत्तीर्णः कृतकृत्यो ऽचलस्थितिः ।। ७४ ।।' (क) 'चरस्थिरार्थसम्पूर्णे मृग्यमाणं जगत्त्रये ।
उपमानोपमेयत्वं मन्ये स्वस्यैव स स्वयम् ।। ७६ ।।' (ख) 'यतोऽन्तगुणानां स्यादनन्तांशोऽपि कस्यचित् ।
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ततो न शक्यते कर्तुं तेन साम्यं जगत्त्रये ।। ७७ ।।' १०५ ' शक्यते न यथा ज्ञातुं पर्यन्तं व्योमकालयोः ।
तथा स्वभावजातानां गुणानां परमेष्ठिनः ।। ७८ ।' (क) ' त्रैलोक्यतिलकीभूतं निःशेषविषयच्युतम् ।
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निर्द्वन्द्वं नित्यमत्यक्षं स्वादिष्टं स्वस्वभावजम् ॥ ८३ ॥ (ख) 'निरौपम्यविच्छिन्नं स देवः परमेश्वरः ।
तत्रैवास्ते स्थिरीभूतःपिबन् ज्ञानसुखामृतम् ।। ८४ ।।' (क) 'उदेति केवलं जीवे मोह - विघ्नावृतिक्षये ।
भानु बिम्बमिवाकाशे भास्वरं तिमिरात्यये ।। २ ।। ' (ख) 'सामान्यवद् विशेषाणां स्वभावो ज्ञेयभावतः ।
ज्ञायते स च वा साक्षाद् विना विज्ञायते कथम् ।। १३ ।।' ( ग ) 'सर्वज्ञः सर्वदर्शी च ततो ज्ञान स्वभावतः । नास्य ज्ञानस्वभावत्वमन्यथा घटते स्फुटम् ।। १४ ।।'
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- ज्ञानार्णव सर्ग ४२ ।
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- योगसारप्राभृत ७ ।
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