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परमात्मा का स्वरूप लक्षण, और प्रकार
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रंग की वस्तु रख दी जाती है, वह वह वैसी ही प्रतीत होता है। उसी प्रकार हमारी आत्मा भी स्फटिक रत्न के समान निर्मल है। आत्मा जिस भाव का आलम्बन ग्रहण करती है, उस भाव की तन्मयता वाली बन जाती है।"८ सिद्ध परमात्मा अमूर्त (शरीर रहित) निराकार, चिदानन्द स्वरूप और निरंजन होते हैं। वे आगे लिखते हैं कि सिद्ध परमात्मा के स्वरूप का आलम्बन लेकर उनका सतत् ध्यान करने वाली आत्मा ग्राह्य-ग्राह्यक भाव अर्थात् ध्येय और ध्याता के भाव से रहित सिद्ध स्वरूप को प्राप्त करती है।" हेमचन्द्राचार्य योगशास्त्र में आगे कहते हैं कि पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत इन चारों प्रकार के ध्यानामृत में निमग्न आत्मा आत्मानुभव करके स्वयं की विशुद्धि करती है। सर्वज्ञ परमात्मा के वचन ऐसे सूक्ष्मस्पर्शी होते हैं कि वे किसी हेतु या युक्ति से खण्डित नहीं होते।२० सिद्ध परमात्मा केवलज्ञान और केवलदर्शन से युक्त एवं सर्व कर्मों से मुक्त होते हैं। वे सादि अनन्त, अनुपम, अव्याबाध और स्वाभाविक रूप से पैदा होने वाले आत्मिकसुख को प्राप्त कर उसी में निमग्न रहते हैं।२१
५.२.१० बनारसीदासजी के अनुसार
परमात्मा का स्वरूप बनारसीदासजी समयसार नाटक के सर्वविशुद्धि द्वार में परमात्मा के स्वरूप का विवेचन करते हुए लिखते हैं कि निश्चयनय से यह दृष्टिगोचर होता है कि वे परमात्मा निज-स्वभाव में निमग्न परम प्रकाश रूप हैं और जिसमें लोकालोक के छः द्रव्यों के भूत, भविष्य, वर्तमान, त्रिकालवर्ती अनन्तगुण पर्यायें प्रतिभासित होती हैं। इस परमात्मदशा को प्राप्त आत्मा विषय विकारों से विरक्त रहती
१८ वही ६/१३-१४ । १६ वही १०/१-४ । १२० वही १०/५-१६ । १२१ वही ११/६१ ।
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