Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
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जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा
शुभचन्द्र ने अन्य जैन आचार्य के समान ही परमात्मा के दो प्रकार माने हैं : (१) अर्हत्, और (२) सिद्ध। इन दोनों अवस्थाओं का चित्रण करते हुए वे लिखते हैं कि वे केवली भगवान निर्मल, शान्त, निष्कलंक, निरामय, जन्म, मरण, रूप, दुर्निवार कष्टों से रहित हैं। वे सिद्ध, सुप्रसिद्ध, निष्पन्न, आत्मनिरंजन, निष्क्रिय, निष्कल, शुद्ध निर्विकल्प, अतिनिर्मल, यथाख्यातचारित्र से युक्त, अनन्त शक्तिमान, परम शुद्धि को परिप्राप्त, साधितात्म, स्वस्वरूप स्वभाव, त्यक्तयोग, अयोगी, परमेष्ठी परमात्मा, परमप्रभु, शुद्धात्मा, निरामय, निर्विकल्प निराबाध आदि नामों से जाने जाते हैं। अन्त में सिद्धपरमात्मा का निर्वचन करते हुए वे लिखते हैं कि वे सिद्ध परमात्मा, निद्रा, तन्द्रामय भ्राँति, राग, द्वेष, पीड़ा और संशय से रहित हैं तथा क्षोभ, मोह, जन्म, जरा, मरण इत्यादि से भी रहित हैं। उनमें क्षुधा, तृषा, खेद, मद, उन्माद, मूर्छा और मात्सर्य भाव भी नहीं है। वहाँ वृद्धि और हास भी नहीं है। उनका वैभव
-ज्ञानार्णव सर्ग ४२ ।
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६६ (क) 'तदाहत्त्वं परिप्राप्य स देवः सर्वगः शिवः ।
जायतेऽखिलकर्मीघजरामरणवर्जितः ।। ३८ ।।' (ख) 'स्थितिमासाद्य सिद्धात्मा तत्र लोकाग्रमन्दिरे ।
आस्ते स्वभावजानन्तगुणैश्वर्योपलक्षितः ।। ६३ ।।' (ग) 'आत्यन्तिकं निराबाधमत्यक्षं स्वस्वभावजम् ।
यत्सुखं देवदेवस्य तद्वक्तुं केन पार्यते ।। ६४ ।।' (क) 'तदासौ निर्मलः शान्तो निष्कलंको निरामयः ।
जन्मजानेकदुर्वारबन्धव्यसन विच्युतः ।। ५५ ।।' 'सिद्धात्मा सुप्रसिद्धात्मा निष्पन्नात्मा निरंजनः । निष्क्रियो निष्कलः शुद्धो निर्विकल्पोऽतिनिर्मिलः ।। ५६ ।।' 'आविर्भूतयथाख्यात चरणोऽनन्तवीर्यवान् । परां शुद्धिं परिप्राप्तो दृष्टेबर्बोधस्य चात्मनः ।। ५७ ।।' 'अयोगी त्यक्तयोगत्वात्केवलोत्पादनिर्वृतः ।
साधितात्मस्वभावश्च परमेष्ठि परं प्रभुः ।। ५८ ।।' (च) 'लघुपंचाक्षरोच्चकालं स्थित्वा ततः परम् ।
स स्वभावावृजत्यूवं शुद्धात्मा वीतबन्धनः ।। ५६ ।।' (क) निद्रातन्द्राभयभ्रान्तिरागद्वेषार्तिसंशयैः ।
शोकमोहजराजन्ममरणायैश्च विच्युतः ।। ७१ ।।' (ख) 'क्षुत्तृश्रममदोन्मादमूर्छामात्सर्यवर्जितः ।
वृद्धिहासव्यतीतात्मा कल्पनातीतवैभवः ।। ७२ ।।'
-वही।
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