Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
View full book text
________________
परमात्मा का स्वरूप लक्षण, और प्रकार
शुद्ध
शिवस्वरूप हैं। उन्हें शुद्ध - बुद्ध स्वभाव वाला कहा गया है। द्रव्यार्थिकनय से संसार अवस्था में रहते हुए सभी जीव शक्तिरूप से परमात्मा हैं । अभी वे उस परमात्मस्वरूप को प्रकट नहीं कर पाये हैं । अन्य ग्रन्थों में भी कहा गया है कि परमकल्याणरूप, शिवस्वरूप और निर्वाणरूप मुक्तिपद को जिसने पा लिया है, वही शिव है । योगीन्दुदेव के अनुसार ऐसी शुद्धात्मा ही शान्त है, शिव है और ध्येय है। परमात्मप्रकाश की १६, २० एवं २१वीं गाथा में योगीन्दुदेव द्वारा सिद्ध परमात्मा के निरंजन रूप की विस्तृत चर्चा की है । वे परमात्मा श्वेत आदि पाँच प्रकार के वर्णों, दो प्रकार की गन्ध तथा मधुर आदि पांच प्रकार के रसों से रहित हैं । वे शब्द रूप भी नहीं है अर्थात् शब्द के द्वारा भी ग्राह्य नहीं हैं । वे सप्त स्वर, शीत आदि आठ स्पर्श तथा जन्म, जरा, मृत्यु आदि से परे हैं। उन चिदानन्द सिद्ध परमात्मा में क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायों का अभाव है। वे मोह और ममता से रहित है। उनमें पुण्य-पाप, हर्ष-विषाद एवं क्षुधादि दोषों का अभाव है। वहाँ न ध्येय स्थान है और न ध्यान है । इस प्रकार योगीन्दुदेव ने निर्मल ज्ञान - दर्शन स्वभाव वाले निरंजन सिद्ध परमात्मा के स्वरूप का कथन किया है । परमात्मप्रकाश में सिद्ध परमात्मा में यन्त्र, मन्त्र, मण्डल, मुद्रा आदि के व्यवहार का निषेध किया गया है। योगीन्दुदेव ने अग्रिम गाथाओं में परमात्मा के स्वरूप का उल्लेख इस प्रकार किया है : “वह परमात्मा वेदादिशास्त्रगम्य एवं इन्द्रियगम्य नहीं केवल परम
३८
(क) 'णिच्चु णिरंजणु णाणमउ परमाणंद-सहाउ ।
जो एहउ सो (ख) 'जो णिय
संतु सिउ तासु मुणिज्जहि भाउ ।। १७ ।। भाउ ण परिहरइ जो पर भाउ ण लेइ । इस विणिच्चु पर सो सिउ संतु हवेइ ।। १८ ।। ' (क) 'जासु ण वण्णु ण गंधु रसु जासु ण सहु ण फास ।
३६
४०
जासु ण जम्म मरणु ण वि गाउ णिरंजणु तासु ।। १६ ।। ' (ख) 'जासु ण कोहु ण मोहु मउ जासु ण माय ण माणु । झाजिय सो जि णिरंजणु जाणु ।। २० ।। ' ( ग ) 'अत्थि ण पुण्णु ण पाउ जसु अत्थि ण हरिसु विसाउ ।
Jain Education International
३०१
For Private & Personal Use Only
- परमात्मप्रकाश १ ।
-वही ।
अणि एक्कवि दोसु जसु सो जि णिरंजणु भाउ ।। २१ ।। ' - परमात्मप्रकाश १ । 'जासु ण धारणु धेउ ण वि जासु ण जंतु ण मंतु । जाण मंडलु मुद्द ण वि सो मुणि देउं अणंतु ।। २२ ।। '
-वही ।
- परमात्मप्रकाश १ ।
www.jainelibrary.org