Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP

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Page 351
________________ ३०० जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा आत्मोपासना से परमात्मा का स्वरूप प्रकट होता है।३६ समाधितन्त्र में आचार्य पूज्यपाद् लिखते हैं कि परमात्मा पूर्ण आनन्दस्वरूप हैं। वे आनन्दकन्द हैं। वे परमज्योतस्वरूप हैं। परमात्मा के अनन्त गुण हैं। इसलिए परमात्मा के अनन्त नाम हैं। वे निम्न हैं : “अजर, अमर, अक्षय, अरोग, अभय, अविकार, अज, अकलंक, अशंक, निरंजन, सर्वज्ञ, परमज्योति, बुद्ध, आनन्दकन्द, शास्ता, विधाता आदि। सिद्ध और अरिहन्त के भेद से परमात्मा के दो प्रकार होते ५.२.४ योगीन्दुदेव के अनुसार परमात्मा का स्वरूपः या। (क) परमात्मप्रकाश के अनुसार परमात्मा योगीन्दुदेव ने परमात्मा के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए परमात्मा को दो प्रकार का बताया है : १. सिद्ध परमात्मा और २. अरिहन्त परमात्मा। यहाँ पर योगीन्दुदेव मुक्ति को प्राप्त हुए केवलज्ञानादि गुणों से युक्त सिद्ध परमात्मा का वर्णन इस प्रकार करते हैं : “जिसने देहादिक समस्त पर-द्रव्यों का परित्याग कर अर्थात कर्मरहित होकर केवलज्ञान को उपलब्ध कर लिया है, उसे परमात्मा कहा जाता है।" योगीन्दुदेव आगे कहते हैं कि वे परमात्मा नित्य, निरंजन, ज्ञानमय, परमानन्द स्वभाव और शिवस्वरूप हैं। द्रव्यार्थिकनय से वे अविनाशी, रागादि उपाधि, कर्ममल से रहित एवं केवलज्ञान से परिपूर्ण शुद्धात्मा, वीतराग, परमानन्द से युक्त, शान्त और ३६ (क) समाधितन्त्र श्लोक ७ । (ख) 'यदन्तर्जल्पसंपृक्तमुत्प्रेक्षा जालमात्मनः । मूलं दुःखस्य तन्नाशे शिष्टमिष्टं परं पदम् ।। ८५ ।।' ३७ समाधितन्त्र प्रवचन पृ. ६४-६७ । -समाधितन्त्र । -पं. रतनचन्द भरिल्ल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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