Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
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जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा
गुणस्थान से लेकर ११वें उपशान्तमोह गुणस्थानवर्ती आत्माएँ आती हैं। जो आत्माएँ क्षायिक श्रेणी से आरोहण करती हैं, उनमें वें अपूर्वकरण गुणस्थान से लेकर १२वें क्षीणमोह गुणस्थान तक की आत्माएँ होती हैं। इन्हें उत्कृष्ट-मध्यम अन्तरात्मा इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनमें किसी न किसी रूप में संज्वलन कषाय की सत्ता बनी रहती है।
उत्कृष्ट अन्तरात्मा वह होती है जिसमें वासनाओं और कषायों का पूर्णतः अभाव होता है। इसीलिए क्षीणमोह गुणस्थानवर्ती आत्माओं को उत्कृष्ट अन्तरात्मा कहा जाता है। वह शीघ्र ही परमात्म अवस्था को प्राप्त कर लेती है।
।। चतुर्थ अध्याय समाप्त ।।
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