Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
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विषय प्रवेश
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पर्याय और योगरूप पर्याय क्रमशः बद्ध सशरीरी आत्माओं में ही होती है। ___जैनदर्शन में कोई भी द्रव्य पर्यायविहीन नहीं होता। अतः पर्यायों की सत्ता तो संसारी और सिद्ध दोनों प्रकार की आत्माओं में होती है। मात्र अन्तर यह है कि अर्हन्त और सिद्ध में स्वभाव रूप पर्याय होती हैं, जबकि संसारी आत्मा में स्वभावरूप और विभावरूप दोनों ही पर्याय होती हैं। कषाय आत्मा मात्र विभावदशा की सूचक है। अर्हन्त और सिद्ध परमात्मा में तथा बारहवें गुणस्थानवर्ती अन्तरात्मा में कषाय आत्मा का अभाव होता है। सशरीरी जीवों में अयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों को छोड़कर शेष प्रथम से लेकर तेरहवें गुणस्थान तक योगात्मा की सत्ता भी होती है। प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर दसवें सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान तक तो आठों ही आत्माओं की सत्ता रही हुई है।
त्रिविध आत्मा की दृष्टि से विचार करें, तो बहिरात्मा में भगवतीसूत्र में प्रतिपादित इन आठों ही आत्मा की सत्ता रहती है। जहाँ तक अन्तरात्मा का प्रश्न है, चतुर्थ गुणस्थानवर्ती जघन्य अन्तरात्मा में तथा पाँचवें से दसवें गुणस्थानवर्ती मध्यम अन्तरात्मा में भी आठों ही आत्मा की सत्ता रहती है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि बहिरात्मा और अन्तरात्माओं में स्वभाव और विभाव दोनों ही पर्याय पाई जाती हैं। बारहवें गुणस्थानवर्ती उत्कृष्ट अन्तरात्मा में तथा तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानवर्ती परमात्मा में विभावरूप पर्याय का अभाव होता है। सयोगीकेवली परमात्मा के ज्ञान, दर्शन
और चारित्र रूप पर्याय पूर्णतः शुद्ध और निरावरण होते हैं। अयोगी केवली परमात्मा में योगात्मा और कषायात्मा का अभाव होता है। शेष छः आत्मरूप पर्यायें निरावरण रूप होते हैं।
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