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विषय प्रवेश
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सम्बन्ध ज्ञानात्मा से, अनन्तदर्शन का सम्बन्ध दर्शनात्मा से, अनन्तसुख का सम्बन्ध चारित्रात्मा से और अनन्तवीर्य का सम्बन्ध वीर्यात्मा से है। यद्यपि क्रियारूप चारित्र और पुरुषार्थरूप वीर्य का सिद्धों में अभाव होता है; किन्तु दोषनिवृत्तिरूप चारित्र तथा सत्तारूप वीर्य तो होता ही है। जहाँ तक योगात्मा और कषायात्मा का प्रश्न है, सिद्ध परमात्मा में इन दोनों का अभाव होता है क्योंकि सिद्ध अशरीरी हैं। उनमें मन, वचन और काया की प्रवृत्तिरूप तीनों योग और कषाय का अभाव होता है। ___अरिहन्त परमात्मा में अष्टविध आत्माओं में से कषायात्मा को छोड़कर शेष सातों ही आत्माएँ पाई जाती हैं। क्योंकि अरिहन्त सशरीरी हैं; इसलिए उनमें द्रव्यात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चारित्रात्मा और वीर्यात्मा के साथ-साथ योगात्मा भी होती है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि अरहन्त की दो अवस्थाएँ होती हैं : सयोगीकेवली और अयोगीकेवली। उनमें से अयोगीकेवली अवस्था जो अत्यन्त अल्पकालिक है; उसमें योग का अभाव होने से शेष षड्विध आत्मा की ही सत्ता होती है। ___अष्टविध आत्मा की अवधारणा और अन्तरात्मा के सम्बन्ध को लेकर विचार करें तो अष्टविध आत्माओं में अन्तरात्मा की अपेक्षा भेद से कभी आठों आत्माओं की तो कभी सात आत्माओं की सत्ता मानी जा सकती है। गुणस्थान सिद्धान्त के आधार पर अन्तरात्मा को चतुर्थ अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर बारहवें क्षीणमोह गुणस्थान तक माना गया है। इसमें से ग्यारहवें उपशान्तमोह गुणस्थान में कषाय का उदय तो नहीं होता है; किन्तु उपशम श्रेणी के कारण कषाय की सत्ता तो होती है। अतः ग्यारहवें गुणस्थानवर्ती आत्मा में उदय की अपेक्षा से सात और सत्ता की अपेक्षा से आठों आत्मा होती हैं। बारहवें गुणस्थानवर्ती अन्तरात्मा में सात ही आत्माओं की सत्ता होगी। चौथे से लेकर दसवें सूक्ष्मसम्पराय
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