Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
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जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा
वस्तुस्वरूप जानने का प्रयत्न करती है।३ पूज्यपाद् अन्तरात्मा का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि इस आत्मा के आत्मस्वरूप की भावना के बल से राग-द्वेष, इष्ट-अनिष्ट की कल्पना व उसके विकारी भाव नष्ट हो जाने पर शत्रु-मित्रादि का भाव भी उसमें नहीं होता। जब अन्तरात्मा की भावेन्द्रियाँ स्वभाव की ओर झुक जाती हैं, तब द्रव्येन्द्रियों का संयम सहज ही हो जाता है। अन्तरात्मा ज्ञानानन्द स्वभाव की ओर दृष्टि करके निज शुद्धात्म द्रव्य का अनुभव करती है और तब चिदानन्दस्वरूप प्रतिभाषित होता है। वही आत्मा का स्वरूप है। पांचों इन्द्रियों से हटकर अपने आनन्द स्वभाव का अनुभव करने पर शुद्धात्म स्वरूप का ख्याल आता है। वही परमात्मा का स्वरूप है। अन्तरात्मा आत्म सन्मुख रहती है। वह यह चिन्तन करती है कि “जो मैं , वही परमात्मा है। जो परमात्मा है, वही मैं । परमात्मा आराध्य हैं, मैं आराधक । मुझमें और परमात्मा में कोई अन्तर नहीं है। उन परमात्मा के जैसा मेरा स्वरूप है।" आत्मा में अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य रहे हुए हैं। उसी आनन्द से परिपूर्ण ज्ञानस्वरूप शुद्ध आत्मा को अपने पुरुषार्थ से प्राप्त किया जा सकता है। यह आत्मा अविनाशी चैतन्यस्वरूप है। शरीर और इन्द्रियाँ अचेतन एवं जड़ हैं। पूज्यपाद देवनन्दी अन्तरात्मा का निर्वचन करते हुए लिखते हैं कि अन्तरात्मा आत्मा और शरीर का भेद विज्ञान करती हुई चैतन्यस्वरूप में एकाग्र होकर अतीन्द्रिय आनन्द में झूमती रहती है। अन्तरात्मा ज्ञाता द्रष्टा स्वभाववाली होने से उसका मनरूपी जल रागादि तरंगों से चंचल नहीं होता है। इस आत्मा की परसन्मुख दृष्टि नहीं होती। वह आत्मा परम वीतरागता को प्राप्त होकर निर्विकल्प निरामूल आनन्द का अनुभव करती है। जैसे केंचुली सर्प नहीं है, उसी प्रकार चैतन्यस्वरूप बहिरात्मा पर राग-द्वेष-मोहरूप जो केंचुली है, वह आत्मा का स्वरूप नहीं है। बहिरात्मा राग-द्वेष-मोहरूप केंचुली के कारण अज्ञानतावश चारों गतियों में भ्रमण करती है। जब आत्मा बहिरात्मा से अन्तरात्मा की ओर अग्रसर हो जाती है, तब वह अपने वास्तविक स्वरूप को
३३ 'उत्पन्न पुरुष भ्रान्तेः स्थाणौ यद्वद्विचेष्टितम् ।
तद्वन्मे चेष्टितं पूर्व देहादिष्वात्मविभ्रमात् ।। २१ ।।'
-वही ।
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