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अन्तरात्मा का स्वरूप, लक्षण और प्रकार
प्रतिकार करना पड़ सकता है। गृहस्थ जीवन के अन्तर्गत श्रावक संकल्पजा, विरोधजा, उद्योगजा और आरम्भजा इनमें से वह केवल संकल्पजा त्रस जीवों की हिंसा का त्याग करता है । अहिंसा अणुव्रत को स्थिर रखने हेतु निम्न पाँच अतिचारों से बचना होता है
१. बन्धन; २. वध; ३. छविच्छेद;
४. अतिभार; और ५. अन्नपान निरोध ।
२. सत्य - अणुव्रत
सत्य-अणुव्रत का दूसरा नाम स्थूलमृषावाद विरमणव्रत भी मिलता है। योगशास्त्र में आचार्य हेमचन्द्र स्थूलमृषावाद के पाँच प्रकार बताते हैं : १४५
१. वर-कन्या सम्बन्धी; २. पशु सम्बन्धी; ३. भूमि सम्बन्धी; ४. असत्य वचन बोलना न्यासापहार; एवं ५. झूठी गवाही देना । उपासकदशांगसूत्र में सत्य - अणुव्रत के पाँच अतिचार उपलब्ध होते हैं : १४६
१. बिना सोचे समझे किसी पर मिथ्या दोषारोपण करना; एकान्त में वार्तालाप करने पर किसी पर मिथ्या दोषारोपण करना;
२.
३. स्वस्त्री या स्वपुरुष की गुप्त बात प्रकट करना; मिथ्या उपदेश या झूठी सलाह देना; और
४.
५. झूठे दस्तावेज लिखना ।
वंदित्तुसूत्र में भी पाँच अतिचारों का वर्णन उपलब्ध होता है । १४७
३. अचौर्य- अणुव्रतः
इस अणुव्रत का दूसरा अपर नाम 'स्थूल अदत्तादान विरमणव्रत' प्राप्त होता है । अदत्त अर्थात् किसी वस्तु का दिये बिना इसे ही चोरी कहा गया है। उपासकदशांगसूत्र,
ग्रहण करना
१४५ योगशास्त्र २/५४ |
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उपासकदशांगसूत्र १/३३ ( लाडनूं) ।
दत्तुसूत्र १४ । उपासकदशांगसूत्र १/३४ ।
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