Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
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अन्तरात्मा का स्वरूप, लक्षण और प्रकार
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देना हिंसा दान है। (४) पापकर्मोपदेश : पापकर्म हेतु उपदेश देना पापकर्मोपदेश है। (५) दुःश्रुति : दुःश्रुति प्रमादाचरण का एक भेद है। अनर्थदण्ड के पाँच अतिचार
१. कन्दर्प; २. कौत्कुच्य; ३. मौखर्य; ४. संयुक्ताधिकरण; और ५. उपभोगपरिभोगातिरेक।
६. सामायिकव्रत
सामयिक समत्व (समभाव) की साधना है। यह जैनदर्शन का केन्द्र बिन्दु है। श्रावक इस सामायिक को प्रथम स्थान देता है, क्योंकि यह शिक्षाव्रत अन्य सभी व्रतों को बलवान बनाता है। श्रावक द्वारा नियत समय तक हिंसादि पाप कार्यों का मन, वचन और काया के व्यापार करने, कराने तथा करने के अनुमोदन करने का त्याग करना ही सामायिकव्रत है। सामायिक में निम्न ४ प्रकार की विशुद्धि अनिवार्य है : १. कालविशुद्धि; २. क्षेत्रविशुद्धि; ३. द्रव्यविशुद्धि ; और ४. भावविशुद्धि। ___ सामायिकव्रत के पाँच अतिचार निम्न हैं : १. मनोदुष्प्रणिधान; २. वाचोदुष्प्रणिधान ; ३. कायेदुष्प्रणिधान ; ४. स्मृत्यकरण; और ५. अनवस्थान।
१०. देशावकाशिकव्रत
इस व्रत में दिशा का परिमाण एवं उपभोग परिभोग की सामग्री की मात्रा को एक दिवस के लिए और भी सीमित किया जाता है। श्रावक उस निश्चित क्षेत्र-सीमा के बाहर न स्वयं जाता है और न कोई पाप प्रवृत्ति करता है और न किसी से करवाता है। वह अहिंसक वृत्ति का पालन करता है। इस व्रत के पाँच अतिचार निम्न हैं :
१. आनयन प्रयोग; २. प्रेष्य प्रयोग; ३. शब्दानुपात; ४. रूपानुपात; और ५. पुद्गल प्रक्षेप।
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