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जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा
२. मार्गानुसारी के ३५ गुण
आचार्य हेमचन्द्राचार्य, अचार्य नेमिचन्द्र एवं आशाधरजी ने सद्गृहस्थ के जीवन में सद्गुणों का उल्लेख किया है। आचार्य हरिभद्र एवं हेमचन्द्र ने इन्हें मार्गानुसारी गुण कहा है। ये गुण श्रावक की आध्यात्मिक साधना हेतु व्यवहारिक-सामाजिक जीवन जीने के लिए प्राथमिक शर्त के परिचायक हैं - तभी वह अणुव्रतों की साधना का अधिकारी है। धर्मबिन्दु प्रकरण ३६ एवं योगशास्त्र४० में ३५ गुणों का उल्लेख होता है। वे निम्न हैं :
१. न्याय नीतिपूर्वक धन का उपार्जन करना; २. शिष्ट पुरुषों के आचरण की प्रशंसा करना; ३. कुल एवं शील में अपने समान स्तर वालों से सम्बन्ध करना; ४. पापों से भय रखना अर्थात् पापाचार का त्याग करना; ५. अपने देश के आचार का पालन करना; ६. दूसरों की निन्दा नहीं करना; ७. ऐसे घर में निवास करना जो सुरक्षावाला तथा वायु,
प्रकाशादि से युक्त हो;
घर के द्वार अधिक नहीं रखना; ६. सत्पुरुषों की संगति करना; १०. माता-पिता की सेवा करना; ११. चित्त में क्षोभ उत्पन्न करने वाले स्थानों से दूर रहना; १२. निन्दनीय कार्यों का त्याग करना; १३. आय के अनुसार व्यय करना; १४. देश एवं कुल के अनुकूल वस्त्र धारण करना; १५. बुद्धि के निम्न ८ गुणों से सम्पन्न होना :
(१) धर्म श्रवण की इच्छा रखना; (२) अवसर मिलने पर धर्म श्रवण करना;
१३६ धर्मबिन्दुप्रकरण १/४-५८ । १४० योगशास्त्र १/४७-५६ ।
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