Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
View full book text
________________
विषय प्रवेश
.२६४
,
उत्तराध्ययनसूत्र , दशवैकालिकसूत्र जीवाभिगम २६६, कर्मास्रव २६७ (भाष्यमान्य पाठ), पंचास्तिकाय आदि में षड्जीवनिकाय को त्रस और स्थावर ऐसे दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है । प्राचीन ग्रन्थों में स्थावर के अन्तर्गत पृथ्वी, अप् और वनस्पति तथा त्रस के अन्तर्गत अग्नि, वायु और त्रस निकाय के जीवों को माना गया है । किन्तु परवर्ती आचार्यों ने स्थावर के निम्न पाँच भेदों का उल्लेख किया है :
१. पृथ्वी; २. अप्; ३. तेजस् ४. वायु; और ५. वनस्पति । इसी क्रम में त्रस के निम्न चार भेदों का उल्लेख किया है १. द्वीन्द्रिय; २. त्रीन्द्रिय; ३. चतुरिन्द्रिय और ४. पंचेन्द्रिय ।
डॉ. सागरमल जैन की मान्यता है कि षड्जीवनिकाय का यह परवर्ती वर्गीकरण स्थावर एवं त्रसजीवों की अपेक्षा से न होकर एकेन्द्रिय आदि के वर्गीकरण के आधार पर किया गया है। इसमें सभी एकेन्द्रिय जीवों को स्थावर मान लिया गया है । यहाँ हम इस विवाद में नहीं उलझना चाहेंगे। जो विद्वज्जन इस विषय की अधिक गहराई में प्रवेश करना चाहते हैं, उन्हें डॉ. सागरमल जैन के लेख 'षड्जीवनिकाय' में त्रस एवं स्थावर का वर्गीकरण देखना चाहिए ।
.२६६
२६७
२६५
१. संसारीजीव के भेद :
उत्तराध्ययनसूत्र के ३६वें अध्याय में संसारीजीव के सर्वप्रथम निम्न दो भेद उपलब्ध होते हैं : (१) त्रस और (२) स्थावर । २००
उत्तराध्ययनसूत्र ३६ / ३०-३१ ।
२६४
२६५ दशवैकालिकसूत्र ४/३१ ।
२९६ 'गतित्रसेष्वन्तर्भाव विवक्षणात, तेजोवायुनां लब्ध्या सीवराणामपि सतां ।'
- जीवाभिगम टीका १/१२ एवं ७५ ( उद्धृत् - डॉ.सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ पृ. १३० ) (क) तत्त्वार्थसूत्र (सर्वार्थसिद्धि टीका) २/१२;
(ख) वही (राजवार्तिक टीका ) २ / १२ ।
२६८ पंचास्तिकाय ११०-१११ ।
७६
REE 'डॉ. सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ' पृ. १२६-१२८ ।
३००
उत्तराध्ययन सूत्र ३६ / ६८ एवं १०७ |
Jain Education International
-
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org