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विषय प्रवेश
चतुरिन्द्रिय जीव : __ जो जीव स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय और चक्षु इन्द्रिय ऐसी चार इन्द्रियों से सम्पन्न होते हैं, वे चतुरिन्द्रिय कहलाते हैं। इनके दो भेद हैं - बादर पर्याप्तक और बादर अपर्याप्तक। उत्तराध्ययनसूत्र एवं जीवविचार में२६६ चतुरिन्द्रिय जीवों के निम्न भेद मिलते हैं - बिच्छू, मच्छर, भ्रमर, पतंग, कीट, झींगुर आदि।३१२
पंचेन्द्रिय जीव : __ जो जीव स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र - इन पांचों इन्द्रियों से युक्त होते हैं, वे पंचेन्द्रिय जीव कहलाते हैं। इनके भी पर्याप्तक और अपर्याप्तक ऐसे दो भेद हैं। कर्मानव में मन की अपेक्षा से पंचेन्द्रिय जीव के निम्न दो भेद किये गये हैं - संज्ञी और असंज्ञी। वैसे संज्ञी पंचेन्द्रिय को छोड़कर शेष सभी जीव असंज्ञी माने जाते हैं। उत्तराध्ययनसूत्र १३ एवं प्रज्ञापनासूत्र३१४५ में पंचेन्द्रिय जीव के ४ भेद प्राप्त होते हैं : (१) नारक;
(२) तिर्यंच; (३) मनुष्य;
(४) देव।१५ __संज्ञीजीव : जिन जीवों के मन होता है, वे संज्ञी जीव होते हैं।३१६ संज्ञी जीव शिक्षा, क्रिया, उपदेश आदि को आत्मसात् करते हैं। उनमें कर्त्तव्य-अकर्तव्य का विवेक होता है।३१७ नारक और देवगति के जीव संज्ञी होते हैं। लेकिन पंचेन्द्रिय तिर्यंचों और मनुष्यों में संज्ञी और असंज्ञी दोनों प्रकार के जीव होते हैं।३१८ इनमें जो गर्भज हैं, वे संज्ञी हैं।
र उत्तराध्ययनसूत्र ३६/१४५-४८ ।
३१३ वही ३६/१५५
३१८
प्रज्ञापनासूत्र १/५२ ।
-उवंगसुत्ताणि, लाडनूं खण्ड २ । 'पंचेदिया य चउहा, नारय तिरिया मणुस्स देवाय । नेरइया सत्तविहा, नायव्वा पुढवी भेएणं ।। १६ ।।'
-जीवविचार । 'सम्यक् जानातीति संज्ञं मनः तदस्यातीति संज्ञी ।'
-धवला १,१,१,३५ । (क) सर्वार्थसिद्धि २/२४; (ख) शिक्षाक्रियाकलापग्राहीसंज्ञी ।
-तत्त्वार्थवार्तिक ६/७/११ । ३१८ द्रव्यसंग्रह टीका, गा. १२/३० ।
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