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विषय प्रवेश
(१) चर्मपक्षी; (३) समुद्गपक्षी; और
समुद्गपक्षी और विततपक्षी मनुष्य ही होते हैं ।
मनुष्यगति :
जो जीव मनुष्य योनि में उत्पन्न होते हैं वे मनुष्य कहलाते हैं । इनके उत्पत्ति की अपेक्षा से दो भेद प्राप्त हैं : (१) सम्मुच्छिम एवं
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(२) गर्भज ।
(२) रोमपक्षी; (४) विततपक्षी ।
क्षेत्र के बाहर के द्वीपों में
क्षेत्र के अनुसार इनके निम्न तीन भेद हैं (१) १५ कर्मभूमिज; (२) ३० अकर्मभूमिज; एवं (३) ५६ अन्तर्द्वीपज ।
इस प्रकार मनुष्यों के १०१ भेद होते हैं ।
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कर्मभूमिज इस क्षेत्र में मनुष्य स्वपुरुषार्थ के आधार पर जीवनयापन करते हैं । जहाँ असि, मसि और कृषिरूप वृत्ति होती है; जहाँ राज्य-व्यवस्था, समाज-व्यवस्था एवं धर्म-व्यवस्था होती है; वह क्षेत्र कर्मभूमि कहा जाता है। इस क्षेत्र में उत्पन्न होनेवाले मनुष्य कर्मभूमिज कहलाते हैं 1
३३० वही ३६ / १६५-६७ । ३३१ जीवविचार अर्थसहित पृ. ६७ ।
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अकर्मभूमिज जहाँ मनुष्य प्रकृति पर आधारित होता है, वह अकर्मभूमि क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र में समाज-व्यवस्था, राज्य-व्यवस्था, धर्म - व्यवस्था एवं असि, मसि और कृषि सम्बन्धी वृत्तियाँ नहीं होती हैं ।
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अन्तद्वपज - हिमवन्त और शिखरी पर्वत के दोनों तरफ दो-दो दाढ़ाएँ लवण समुद्र में गई हुई हैं । इन आठ दाढ़ाओं के ऊपर सात-सात क्षेत्र रहे हुए हैं । वे ५६ अन्तर्दीप कहलाते हैं । समुद्र के अन्दर रहे हुए द्वीपों में रहने वाले मनुष्य अन्तर्खीपज कहलाते हैं | ३३१
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देवगति :
देवगति नामकर्म के उदय से देवगति में उत्पन्न होनेवाली आत्मा
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- श्री यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला ।
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