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विषय प्रवेश
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(३) क्षायोपशमिकभाव : कर्मानव विवेचन में पण्डित सुखलालजी
कहते हैं कि मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण
और मनःपर्यवज्ञानावरण के क्षयोपशम से क्रमशः मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यायज्ञान का आविर्भाव होता है। इसी प्रकार तीनों प्रकार के अज्ञान अर्थात् मति अज्ञानावरण, श्रुत अज्ञानावरण और विभंग अज्ञानावरण भी ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से होते हैं। फलतः चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन का आविर्भाव होता है। ये अज्ञान भी मिथ्या-ज्ञानरूप होने से ज्ञानावरण के क्षयोपशम के कारण ही माने गये हैं। पंचविध अन्तराय के क्षयोपशम से दान, लाभ आदि पाँच लब्धियों का आविर्भाव होता है। अनन्तानुबन्धी चतुष्क तथा दर्शनामोहनीय के क्षयोपशम से सम्यक्त्व का आविर्भाव होता है। अनन्तानुबन्धी आदि बारह प्रकार के कषायों के क्षयोपशम से चारित्र (सर्वविरति) का आविर्भाव होता है। अनन्तानुबन्धी आदि अष्टविध कषाय के क्षयोपशम से संयमासंयम (देशविरति) का आविर्भाव होता है। इस प्रकार मतिज्ञान आदि अट्ठारह पर्यायें क्षायोपशमिक हैं। ये क्षायोपशमिकभाव औपशमिक भावों की अपेक्षाकृत अधिक समय तक अवस्थित रह सकते हैं।३४७ क्षायोपशमिक भाव को मिश्रभाव भी कहते हैं। यह भाव कर्मों के अंशरूप क्षय और अंशरूप उपशम से उत्पन्न होता है। इसमें सम्पूर्णतः न तो कर्मों का क्षय होता है और न ही उपशम होता है।३४८ तत्त्वार्थवार्तिक३४६ में आचार्य अकलंकदेव क्षायोपशमिक भाव को निम्न उदाहरण से समझाते हैं : जैसे कोदों को धोने से कोदों की मादकता आंशिक रूप से नष्ट हो जाती है और
आंशिक रूप से बनी रहती है; ठीक वैसे ही कर्मों के आंशिक
क्षय और आंशिक उपशम से क्षायोपशमिक भाव होता है। (४) औदयिकभाव३५० : आगमों में औदयिकभाव के इक्कीस भेद
बताये गये हैं। गति नामकर्म के उदय का फल नरक, तिर्यंच,
३४७ वही - भाष्य मान्यपाठ तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् अ. २, सू. ४ । ३४८ 'तत्क्षयादुपशमाच्चोत्पत्रो गुणः क्षायोपशमिकः ।।
-धवला १/१/१/८ । ३४६ 'स्वस्थिति क्षयावशादुदयनिषेके गलतां कार्मणस्कन्धानां फलादानपरिणतिरुदयः उदये भवः औदयिकः ।'
___ -गोम्मटसार जीव गा. ८ ।
३५० वही ।
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