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विषय प्रवेश
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होगी। पुनः यदि आत्मा सनातन तत्त्व है तो उत्पत्ति किसकी और मृत्यु किसकी?२६२ अगर उसे उत्पन्न होने वाला और मरनेवाला स्वीकार करेंगे तो शाश्वत, अजर-अमर और नित्य कौन है? इस प्रकार किसी एक नय पक्ष के द्वारा आत्मा के स्वरूप को सिद्ध नहीं किया जा सकता। नयवादी यदि किसी एकान्त दृष्टिकोण को स्वीकार करते हैं तो वे विवाद में उलझ कर आत्मा के स्वरूप से अनभिज्ञ रह जाते हैं। उसे आत्मानुभूति के द्वारा ही जाना जा सकता है।६३ आत्मा कथन-श्रवण का विषय भी नहीं है, बल्कि अनुभूति का विषय है। तर्क का भी वहाँ कोई कार्य नहीं है; मति या बुद्धि उसे ग्रहण करने में असमर्थ है। 'कहन सुनन को कछु नहीं प्यारे' इस पंक्ति के द्वारा यही सिद्ध होता है कि आत्मा ज्ञानानन्दी या चैतन्य स्वरूप है। वह कहने या सुनने से परे है। वह इन्द्रियों, मन और बुद्धि से भी परे है। आनन्दघनजी द्वारा वर्णित अनिर्वचनीय आत्मा के इस स्वरूप की तुलना कबीर से की जा सकती है। कबीर ने उसे “गूंगे का गुड़ कहा है" अर्थात् उसका (आत्मा का) अनिवर्चनीय स्वरूप वर्णातीत है। उसे अनुभव तो किया जा सकता है किन्तु कहा नहीं जा सकता।२६४ आत्मा को अनुभूति के द्वारा ही जाना जा सकता है।
५. बौद्धदर्शन की अपेक्षा से आत्मा की अवधारणा
बौद्धदर्शन में आत्मा को क्षणिक एवं परिणामी स्वीकारा गया है। दूसरे शब्दों में बौद्धदर्शन उसे प्रतिक्षण परिवर्तनशील मानता है। जैनदर्शन अपने समन्वयवादी दृष्टिकोण के अनुसार उसे परिणामी तो कहता है, परन्तु आत्मा को क्षणिक नहीं मानता है। क्योंकि वह
२६२ 'बन्ध मोक्ष विचार' ।
-पंचास्तिकाय ६७ । २६३ 'आत्मानमात्मना वेत्ति, मोहत्यागाद् य आत्मनि ।
तदेव तस्य चारित्रं, तज्ज्ञानं तच्च दर्शनम् ।। २ ।।' -योगशास्त्र, चतुर्थ प्रकाश । २६४ 'बाबा अगम अगोचर कैसा, ताते कहि समुझावौं ऐसा ।
जो दिसै सो तो है वो नाहीं, है सो कहा न जाई ।। सैना बैना कहि समझावों, गूंगे का गुड भाई । दृष्टि न दीसै मुष्टि न आवै, बिनसै नाहि नियारा ।। ऐसा ग्यान कथा गुरू मेरे, पण्डित करो विचारा ।। १२६ ।।' -कबीर ग्रन्थावली ।
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