Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
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विषय प्रवेश
कहा गया है। चार्वाकदर्शन में चार महाभूतों के समूह से ही चैतन्य तत्त्व अर्थात आत्मा की उत्पत्ति मानी गयी है और चार महाभूतों के अतिरिक्त आत्मा नामक कोई नित्य एवं स्वतन्त्र तत्त्व नहीं माना गया है।६२ बौद्धदर्शन में चेतना से ही चेतना की उत्पत्ति मानकर आत्मसन्ततिवाद को स्वीकार किया गया है। उसने चेतना प्रवाह को आत्मा माना है। साथ ही उसने कूटस्थ (अपरिणामी) नित्यआत्मवाद का निषेध किया है। किन्तु विज्ञानादि पंचस्कन्धों के रूप में सतत प्रवाहशील चेतन सत्ता को अवश्य स्वीकार किया है।६३
आत्मा एक मौलिक तत्त्व है
आत्मा एक मौलिक तत्त्व है। यह सिद्धान्त चार्वाक को छोड़कर समस्त भारतीय दर्शनों ने स्वीकार किया है। उनके अनुसार संसार जड़-चेतन, जीव-पुद्गल या आत्म और अनात्म का संयोग है, फिर भी उनके मतों में कुछ अन्तर है। डॉ. सागरमल जैन के अनुसार इससे सम्बन्धित चार प्रमुख धारणाएँ हैं : १. मूल तत्त्व जड़ (अचेतन) है। उसी से चेतन की उत्पत्ति होती
है। चार्वाक दार्शनिक एवं अजितकेशम्बलिन आदि भौतिकवादी
इस मत का प्रतिपादन करते हैं। २. मूल तत्त्व चेतना है और जड़ की सत्ता उसी पर आश्रित मानी
जा सकती है। बौद्ध विज्ञानवाद, शांकर वेदान्त तथा पाश्चात्य विचारक बर्कले इस मत का प्रतिपादन करते हैं। कुछ विचारक ऐसे भी हैं, जिन्होंने परमतत्त्व को एक मानते हुए भी उसे जड़-चेतन - उभय रूप स्वीकार किया और दोनों को ही उसका पर्याय या अवस्था माना है। गीता, रामानुज और
स्पिनोजा इस मत का प्रतिपादन करते हैं। ४. कुछ विचारक जड़ और चेतन दोनों को परम तत्त्व मानते हैं
सुत्रकृतांग १/१/८ । ६३ (क) न्यायवार्तिक, पृ. ३६६ (न्ययामीमांसा पृ. २ पर उद्धृत्);
(ख) दर्शन दिविजय, पृ. ५१४ ।। ६४ 'जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन'
भाग १ पृ. २०९-१० ।
-डॉ. सागरमल जैन ।
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