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उनके कुटुंब के एक व्यक्ति की प्रकृति ऐसी थी कि वह उनके कोट की जेब में से कुछ पैसे चोरी कर लेता था। फिर भी उन्होंने उस व्यक्ति की प्रकृति को स्टडी किया कि यह 'चोर है' लेकिन उसके लिए ऐसा अभिप्राय नहीं दिया कि 'यह चोर है' क्योंकि यदि चोर होता तो सभी पैसे ले जाता। पैसे भूलकर और ऐसा प्रिज्युडिस रखे बिना कि 'यह चोर है' उन्होंने उस व्यक्ति को सुधारा, उनके पास ऐसी अद्भुत व्यवहार कलाएँ थीं।
घर के अन्य व्यक्ति उसे जिस दृष्टि से देखते थे, उसके बजाय वे खुद ऐसी दृष्टि से देखते थे और उस व्यक्ति में से कुछ न कुछ पॉजिटिव चीज़ ढूँढ निकालते थे। पॉजिटिव को एन्करिजमेन्ट देते, ताकि नेगेटिव अपने आप ही गिर जाए। इस प्रकार इंसान की जिंदगी सुधार देते थे।
उन्हें कुटुंब में तरह-तरह की प्रकृति वाले लोग मिले। तब खुद व्यवहार को बोधकला से सोल्व कर देते थे। किसी की बेटी की शादी होनी हो, किसी बेटी से माँ-बाप परेशान हो गए हों, कोई पैसे का घोटाला कर रहा हो फिर भी अंबालाल भाई उसकी प्रकृति का निरीक्षण करके उसमें से पॉज़िटिव गुण ढूँढकर लोगों को सुधार देते थे।
'टकराव टालिए', यह सूत्र उनके एक भतीजे को सुधारने के लिए सोने की चाबी जैसा साबित हुआ। कचरे में से रत्न ढूँढ निकालने की उनकी ग़ज़ब की दृष्टि थी।
[10] प्रकट हुए गुण बचपन से [10.1] असामान्य व्यक्तित्व शुरू से ही बचपन से ही असाधारण विचार श्रेणी थी। तेरह साल की उम्र में उन्हें असामान्य व्यक्ति बनने का विचार आया था। असामान्य अर्थात् सामान्य व्यक्ति को जो तकलीफें होती हैं, असामान्य व्यक्ति को वे चीजें तकलीफ नहीं लगतीं। असामान्य व्यक्ति औरों की हेल्प के लिए ही होते हैं।
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