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थीं, उन्हें संतोष नहीं होता था। सबकुछ देकर भाभी का केस सॉल्व किया। उन्हें पैसे दिए, घर दिया। ऐसा कर दिया कि भाभी का कोई क्लेम बाकी न रहे।
उनकी जाति के लोग भी कहते थे कि, 'कम उम्र में भाभी विधवा हो गईं फिर भी देवर ने उन्हें इस तरह संभाला, ऐसा तो कभी हुआ ही नहीं है। अंबालाल भाई ने भाभी को दु:ख नहीं होने दिया'।
_[8.4] भाभी के उच्च प्राकृतिक गुण
अंबालाल भाई की खोज ऐसी थी कि, 'ऐसा स्त्री चरित्र, लोभ, वगैरह है तो इतनी नोबल घर में किस तरह से आईं ?' उसके बाद वे समझ गए कि 'यदि एक ही गुण मिलता-जुलता था तो वह था, उनका चरित्र बहुत हाइ क्लास था। उच्च चरित्र था, सती जैसी थीं। कोई उन पर दृष्टि बिगाड़े तो उसकी आ बनती थी, उसके हाथ-पैर तोड़ दें, ऐसी क्षत्राणी थीं। उन्होंने कभी भी पर-पुरुष की तरफ दृष्टि नहीं की थी। इस बात को लेकर उनके प्रति राग था बाकी सब बातों में कड़वी ज़हर जैसी लगती थीं। चरित्र उच्च था इसलिए वह बहुत अच्छा गुण था। पचास साल विधवा की स्थिति में बिताए। (दादाश्री की उपस्थिति में जब दिवाली बा 80 साल की थीं तब दादाश्री ने अपनी भाभी के बारे में ऐसा कहा था कि वे पचास साल से विधवा की स्थिति में हैं) फिर भी उनके चरित्र के बारे में कोई शिकायत नहीं आई। यों योगिनी जैसी थीं, पवित्र स्त्री! ऐसा उत्तम गुण था इसलिए उनकी तरफ हमेशा पूज्यता रही।
__ भाभी भी कहती थीं कि उनके देवर लक्ष्मण जैसे हैं। जिस तरह लक्ष्मण जी ने सीता को रखा था, उसी तरह इन्होंने मुझे रखा है!
दिवाली बा तीस साल की उम्र में विधवा हो गई थीं, उसके बाद स्वामीनारायण धर्म की ओर मुड़ गईं। उस धर्म ने उनकी रक्षा की। उन्होंने धर्म में ऐसी प्रतिज्ञा की थी कि, 'किसी भी स्त्री-पुरुष को छूना नहीं है। वे स्त्रियों को उपदेश देती थीं, शास्त्रों के बारे में समझाती थीं। पूरी जिंदगी सहजानंद स्वामी की भक्ति की और सत्संगी की तरह रहीं।
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