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उसके बाद घर छोड़कर वे अहमदाबाद चले गए, मित्र के वहाँ। ऐसा सोचा था कि 'वहाँ जाकर स्वतंत्र काम करूँगा'। लेकिन भाई का प्रेम था इसलिए बड़े भाई उन्हें वापस बुलाकर ले आए। इस घटना पर से बड़े भाई समझ गए कि इस स्त्री की प्रकृति बहुत भारी है।
घर छोड़कर अहमदाबाद जाने की पूरी घटना का यहाँ पर वर्णन हुआ है। उन्हें पैंसो से संबंधित जो विचार आया इसलिए, उसमें प्योरिटी में रहकर घर से निकले। मित्र के मिलने पर पैसे माँगने पड़े फिर भी ज़रूरत से ज़्यादा पैसे नहीं लिए। घर से निकल गए। 'भाई मुझे ढूँढेंगे' ऐसा सोचकर चिट्ठी लिखकर बड़े भाई को सूचना दी।
अहमदाबाद में जिसके वहाँ जाना था, उस व्यक्ति का एड्रेस भी मालूम नहीं था, तो अपनी सूझ से घर का एड्रेस ढूँढकर वे वहाँ पहुँच गए। व्यापार में भी, नए व्यक्ति के साथ भागीदारी करने की परवशता भी न रहे इस प्रकार से उन्होंने उनके साथ काम करना तय किया।
इस प्रकार कदम-कदम पर उनकी व्यवहारिकता का पता चलता है। सोचकर मंथन करके और किसी को अड़चन न पड़े ऐसी जागृति भी थी। फिर वापस जब बड़े भाई बुलाने आए तब भाई का विनय रखकर भाई के एक ही शब्द पर वापस चले गए। इस प्रकार इस घटना पर से उनकी सूझ के साथ-साथ आदर्श व्यवहार का भी पता चलता है। इस घटना का वर्णन आँखों देखे हाल की तरह बता सके!
बड़े भाई के देहांत के बाद में लोग आश्वासन देने आते थे, तो जो कोई भी आता था, वह भाभी को रुलाता था। तब अंबालाल भाई समझ गए कि लोग इन्हें परेशान करेंगे। उसके बाद झबेर बा से कह दिया कि आप लोगों से कह दो कि बहू के साथ भाई के बारे में कोई भी बातचीत नहीं करनी है। इस तरह लोगों के शब्दों से उन्होंने भाभी का बचाव किया।
भाभी का स्वभाव बहुत सख्त था। अगर उनकी मनमानी नहीं होती थी तो वे त्रागा भी करती थीं। त्रागा यानी सामने वाले को डराकर मारकर अपनी मनमानी करवाना। लेकिन अंबालाल उनके त्रागे
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