________________
पर ध्यान नहीं देते थे। अंत में भाभी ने कहा कि 'इनके जैसा पुरुष मैंने नहीं देखा है। मैं किसी भी पुरुष की नहीं सुनती हूँ, सिर्फ इनकी बात सुनी है। इनसे मैं नहीं जीत सकी'।
अंबालाल भाई कहते थे कि 'आपकी तो क्या मैं किसी की भी नहीं सुनता हूँ। स्त्री चरित्र का पूरा पाठ मैं आपसे सीखा हूँ। अब मैं स्त्रियों द्वारा छला नहीं जा सकता'।
[8.2 ] भाभी को उपकारी माना मणि भाई, झबेर बा और हीरा बा की तरफ से अंबालाल को दुःख नहीं मिले थे लेकिन भाभी की तरफ से परेशानी हुई थी। लेकिन वे खुद भाभी को हमेशा उपकारी मानते थे। भाभी की तरफ से अपमान आते रहते थे, तो वह उन्हें बहुत ही दुष्कर लगता था। वे कहते थे कि, 'ये जो दस साल बीते हैं, उसमें भाभी ने दुःख देने में कुछ भी बाकी नहीं रखा'। फिर भी अंदर समझ थी कि, 'यह हिसाब मेरा ही है। इसकी नोंध करने जैसा नहीं है। जिस तरह नरसिंह मेहता को उनकी भाभी ने धर्म में मदद की थी उसी तरह मेरी भाभी मुझे संसार में वैराग्य लाने के लिए हितकारी निमित्त बनीं'।
वे खुद भी भाभी से कहते थे कि, 'नरसिंह मेहता को भाभी मिलीं तो वे भगत बन गए और आप मुझे मिलीं तो मैं भगवान बन जाऊँगा। मुझे मोक्ष में जाने का रास्ता मिल गया'। हांलाकि ऐसा ही होना था, लेकिन निमित्त वे बन गईं। भाभी के प्रताप से खुद मोक्ष मार्ग की तरफ मुड़ गए। भाभी अति उपकारी बन गईं।
बचपन से ही उनका अध्यात्म की तरफ झुकाव था लेकिन भाभी का किसमें था? अब्स्ट्रक्शन (विरोध) था इसलिए वह ज्यादा हितकारी हो गया।
[8.3] भाभी के साथ लक्ष्मी का व्यवहार
अंबालाल भाई का भाभी के साथ गाढ़ हिसाब था। उन्हें इतना लोभ था कि उन्हें चाहे कितना भी दें फिर भी वे खुश नहीं होती
44